भारतीय शेयर बाजार की अनोखी स्थिति: निवेशकों के लिए चिंता का विषय
भारतीय शेयर बाजार की विचित्र स्थिति
भारतीय शेयर बाजार में वर्तमान में एक अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है। जबकि प्रमुख बेंचमार्क जैसे सेंसेक्स और निफ्टी अपने उच्चतम स्तरों के करीब हैं, बाजार के भीतर की स्थिति काफी चिंताजनक है। बीएसई स्मॉलकैप, जिसमें 1223 कंपनियों के शेयर शामिल हैं, इस वर्ष अब तक 13% की गिरावट में है, और 80% से अधिक लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में मंदी का सामना करना पड़ रहा है।
रुपये की गिरावट और अर्थव्यवस्था की स्थिति
रुपया लगातार कमजोर हो रहा है, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। यह पहली बार है जब सभी आर्थिक संकेतक सकारात्मक हैं, जैसे कि 8% की जीडीपी वृद्धि, स्थिर सरकार, नियंत्रित महंगाई, ब्याज दरों में कमी, और बंपर मानसून।
म्यूचुअल फंड में निवेश के बावजूद मंदी
हालांकि रिटेल निवेशक म्यूचुअल फंड योजनाओं में सक्रियता से निवेश कर रहे हैं, फिर भी 2025 का वर्ष मंदी में बीत रहा है। निवेशकों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसके पीछे लालची मर्चेंट बैंकर और बड़े फंड हाउस जिम्मेदार हैं।
आईपीओ में अनियमितताएँ
बड़े ऑपरेटर और फंड हाउस कुछ प्रमुख शेयरों को बढ़ाकर सेंसेक्स और निफ्टी को ऊंचाई पर बनाए रख रहे हैं, जिससे रिटेल निवेशकों को महंगे आईपीओ में फंसाया जा सके। 1992-1995 के दौरान भी ऐसी ही स्थिति देखी गई थी, जिसके परिणामस्वरूप कई वर्षों तक मंदी का सामना करना पड़ा।
सेबी की भूमिका
सेबी की नीतियों का दुरुपयोग करते हुए पिछले 5 वर्षों में महंगे आईपीओ के माध्यम से रिकॉर्ड पूंजी जुटाई गई है। 340 आईपीओ के जरिए 5.41 ट्रिलियन रुपये की पूंजी जुटाई गई है, जो पिछले 20 वर्षों में जुटाई गई राशि से अधिक है।
निवेशकों के लिए खतरे की घंटी
यह चिंता का विषय है कि रिटेल निवेशक जो एसआईपी के माध्यम से म्यूचुअल फंड में निवेश कर रहे हैं, उनका एक बड़ा हिस्सा महंगे आईपीओ में जा रहा है। इससे म्यूचुअल फंडों का रिटर्न घट रहा है और निवेशकों का पैसा चुनिंदा पूंजीपतियों के हाथों में जा रहा है।
वित्त मंत्री की चिंता
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई बार निजी निवेश की कमी पर चिंता व्यक्त की है, लेकिन महंगे आईपीओ और ओएफएस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।