भारतीय दर्शन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शाश्वत संदेश
भारतीय दर्शन का महत्व
"तेन त्यक्तेन भुज्जीथा" का अर्थ है त्याग के साथ भोग करना। पूज्य श्री गुरूजी का यह मंत्र, "राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम", आज भी संघ के हर सदस्य में गूंजता है। इसका अर्थ है कि 'यह मेरा नहीं है', जो भारतीय दर्शन का मूल है। यह दर्शन तब तक शाश्वत रहता है जब तक यह प्राकृतिक है, और 'इदं न मम' इसी प्राकृतिकता का प्रतीक है।
पशुओं का अपने बच्चों के प्रति समर्पण देखिए; जब बच्चे आत्मनिर्भर हो जाते हैं, तो माता-पिता का संबंध स्वतः समाप्त हो जाता है। पक्षियों की देखभाल भी इसी तरह होती है, और वृक्षों का फल पकने पर उसे छोड़ने का स्वाभाविक क्रम भी यही दर्शाता है। यह सब इस बात का प्रमाण है कि इस संसार में हमारा कुछ भी नहीं है।
संघ का उद्देश्य और दर्शन
भारतीय दर्शन प्राकृतिक है, इसलिए यह शाश्वत है। यह हमारे जीवन में गहराई से समाहित है, जिसके कारण 'सबै भूमि गोपाल की' और 'तेरा तुझको अर्पण' जैसे वाक्य आम लोगों की जुबान पर रहते हैं। हालांकि, यह कहना और इसे अपने जीवन में उतारना अलग बात है। अक्सर लोग अपने परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों के लिए सोचते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा था कि हर व्यक्ति जानता है कि उसका अंत होगा, फिर भी वह अमर रहने का आचरण करता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा संगठन है जहाँ स्वयंसेवक केवल बनाए नहीं जाते, बल्कि उन्हें गढ़ा जाता है। इस संगठन का उद्देश्य "हम करें राष्ट्र आराधन" है, जिसमें पद का महत्व नहीं होता। संघ के कार्यकर्ता समय-समय पर अपने दायित्वों को निभाते हैं, और यही कारण है कि संघ आज भी युवा और ऊर्जावान नजर आता है।
संघ की शताब्दी यात्रा
पूज्य हेडगेवार जी द्वारा स्थापित संघ ने आज अपनी 100 वर्ष की यात्रा पूरी की है।
तन, मन और जीवन को समर्पित करते हुए, हम इस देश की मिट्टी को समर्पित करते हैं।