भारत-यूएई रक्षा सहयोग: नई सामरिक साझेदारी का उदय
भारत और यूएई के बीच बढ़ती सामरिक निकटता
पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को एक रणनीतिक रक्षा समझौते में बदलकर खाड़ी क्षेत्र की सामरिक दिशा में एक नया मोड़ दिया है। इसी समय, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के थल सेना कमांडर मेजर जनरल यूसुफ मायूफ सईद अल हल्लामी की भारत यात्रा ने दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के सुरक्षा समीकरणों में महत्वपूर्ण संदेश दिया है। यह यात्रा, जो दो दिन तक चली, औपचारिक रूप से सैन्य सहयोग और प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ावा देने का प्रयास प्रतीत होती है, लेकिन इसके पीछे गहरे भू-राजनीतिक निहितार्थ छिपे हैं।
सैन्य संवाद और तकनीकी सहयोग
भारत और यूएई के बीच सैन्य संवाद पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस यात्रा के दौरान, मेजर जनरल अल हल्लामी ने भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी के साथ विस्तृत चर्चा की, जिसमें संयुक्त प्रशिक्षण, तकनीकी साझेदारी, और सामरिक समन्वय के नए पहलुओं पर बात की गई। उन्हें ऑपरेशन सिंदूर और भारतीय थलसेना की कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) रोडमैप के बारे में भी जानकारी दी गई। यह दर्शाता है कि भारत अपनी रक्षा तकनीक की प्रगति को खाड़ी देशों के साथ साझा कर दीर्घकालिक भागीदारी की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
यूएई की यात्रा का सामरिक महत्व
अल हल्लामी ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की और डीआरडीओ मुख्यालय में रक्षा अनुसंधान सचिव डॉ. समीर वी. कामत से मुलाकात की, जहां उन्होंने भारत द्वारा विकसित स्वदेशी रक्षा प्रणालियों का अवलोकन किया। यह यात्रा केवल औपचारिकता नहीं थी, बल्कि यूएई के लिए भारत के रक्षा उद्योग को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी था।
क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव
इस यात्रा का सामरिक महत्व केवल द्विपक्षीय सहयोग तक सीमित नहीं है। यह ऐसे समय में हुई है जब क्षेत्रीय शक्ति संतुलन नई आकृतियाँ ले रहा है। पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हाल में हुए स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA) ने खाड़ी और दक्षिण एशिया के सुरक्षा आयाम में एक नई धुरी बनाई है। इस करार के तहत दोनों देशों ने सामूहिक रक्षा और संयुक्त प्रतिरोध की रूपरेखा तैयार की है।
भारत-यूएई संबंधों का भविष्य
भारत और यूएई के बीच रक्षा संबंधों की शुरुआत 2003 में हुई थी। पिछले एक दशक में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अबू धाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नहयान के बीच व्यक्तिगत संबंधों ने इस साझेदारी को नई गति दी है। मेजर जनरल अल हल्लामी की यह यात्रा इस दीर्घकालिक प्रक्रिया का अगला चरण है।
नए सुरक्षा गलियारे की संभावनाएँ
आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यूएई भारत के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यासों, हथियार निर्माण, या तकनीकी निवेश में और सक्रिय भूमिका निभाता है। यदि ऐसा होता है, तो यह सहयोग केवल द्विपक्षीय नहीं रहेगा, बल्कि दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया के बीच एक नए सुरक्षा गलियारे की रूपरेखा तैयार करेगा।