भारत में शिक्षा में लैंगिक समानता और विकास की नई दिशा
शिक्षा में लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति
प्रो संजीव कुमार मिश्रा
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। AISHE 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार, जेंडर पैरिटी इंडेक्स (GPI) पहली बार 1.01 पर पहुँच गया है, जो दर्शाता है कि बेटों और बेटियों की भागीदारी लगभग समान हो गई है। इसके अतिरिक्त, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) जैसे क्षेत्रों में छात्राओं की बढ़ती भागीदारी देश के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास का आधार होती है। भारत में शिक्षा क्षेत्र ने पिछले कुछ दशकों में अद्वितीय प्रगति की है, जो न केवल नीतिगत सुधारों का परिणाम है, बल्कि समाज और सरकार के संयुक्त प्रयासों का भी प्रतिबिंब है। AISHE 2021-22 और 2024-25 के बजट आंकड़ों ने भारत की शिक्षा प्रणाली में हो रहे सकारात्मक बदलावों को स्पष्ट किया है।
विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि
भारत में शिक्षा प्रणाली का विस्तार बहुत व्यापक है। वर्तमान में देश में 1,301 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से 747 सरकारी और 554 निजी शिक्षण संस्थान हैं। इन विश्वविद्यालयों की संख्या में 12.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। निजी संस्थानों में 16.96 प्रतिशत की वृद्धि ने उच्च शिक्षा में निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाया है। उच्च शिक्षा में नामांकन ने भी एक नई ऊंचाई को छुआ है। वर्ष 2020-21 में 4.14 करोड़ नामांकन थे, जो 2021-22 में 4.33 करोड़ तक पहुँच गए। यह 4.6 प्रतिशत की वृद्धि न केवल शैक्षिक जागरूकता को बढ़ाने का प्रमाण है, बल्कि शिक्षा में बेटियों की बढ़ती भागीदारी और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की भागीदारी में वृद्धि को भी दर्शाता है।
साल 2021-22 में छात्राओं की संख्या पहली बार 2 करोड़ को पार कर गई, जो लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट आवंटन
भारत के केंद्रीय बजट ने शिक्षा क्षेत्र के लिए 73,498 करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 19.56 प्रतिशत अधिक है। केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय के लिए किया गया ऐतिहासिक निवेश प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को मजबूत बना रहा है। यह कदम विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में सहायक है। उच्च शिक्षा विभाग को 47,619.77 करोड़ रुपये का आवंटन दिया गया है, जो अनुसंधान और विकास, कौशल विकास और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देता है।
इसके अतिरिक्त, पीएम-विद्या लक्ष्मी योजना जैसी पहलें आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को उच्च शिक्षा सुलभ कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
डिजिटल शिक्षा का उदय
डिजिटल शिक्षा ने शिक्षा प्रणाली में एक नई क्रांति ला दी है। कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफार्मों का उदय हुआ। SWAYAM (Study Webs of Active-Learning for Young Aspiring Minds) और DIKSHA (Digital Infrastructure for Knowledge Sharing) जैसे ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स छात्रों को डिजिटल साधनों का उपयोग करके गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच प्रदान कर रहे हैं। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल उपकरणों की कमी जैसे मुद्दे अभी भी मौजूद हैं।
सरकार ने इन बाधाओं को दूर करने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, जैसे पीएम ई-विद्या योजना, जो छात्रों को एकल डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बहुभाषीय शिक्षा सामग्री प्रदान करती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रभाव
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने भारत में शिक्षा प्रणाली को पुनः परिभाषित किया है। यह नीति वैश्विक मानकों के अनुरूप बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देती है। विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत में अपने कैंपस खोलने की अनुमति और द्विगुण/संयुक्त डिग्री कार्यक्रम जैसी पहलें उच्च शिक्षा को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना रही हैं। NEP के तहत, स्कूली शिक्षा में 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) पर जोर दिया गया है।
हालांकि भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में स्कूलों और कॉलेजों की पहुंच सीमित है। योग्य शिक्षकों की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
भविष्य की चुनौतियाँ
भारत की शिक्षा प्रणाली में हो रही प्रगति केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है; यह इस बात का प्रमाण है कि एक सशक्त और समावेशी शिक्षा तंत्र कैसे एक राष्ट्र को सशक्त बना सकता है। लैंगिक समानता, डिजिटल शिक्षा और सामाजिक समावेश जैसी उपलब्धियां यह दर्शाती हैं कि भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। हालांकि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन सरकार और समाज के सम्मिलित प्रयासों से भारत एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की ओर बढ़ रहा है, जो न केवल देश के भीतर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रतिस्पर्धी और प्रेरणादायक हो सकती है।