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भारत में विदेशी निवेश: अमेरिका और सिंगापुर का दबदबा

भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में विदेशी निवेश का एक तिहाई हिस्सा अमेरिका और सिंगापुर से आ रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 68.75 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इस रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर विदेशी निवेशकों की पहली पसंद बन गया है। जानें इस रिपोर्ट में और क्या खास बातें हैं और कैसे ये निवेश भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं।
 

भारत में विदेशी निवेश का नया दौर

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बना विदेशी निवेशकों की पहली पसंद

भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती का डंका एक बार फिर पूरी दुनिया में बजा है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक ताजा रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि विदेशी निवेशकों के लिए भारत आज भी एक ‘हॉटस्पॉट’ बना हुआ है. वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान देश में विदेशी निवेश का प्रवाह और मजबूत हुआ है. लेकिन इस चमकदार तस्वीर के बीच एक बेहद दिलचस्प और गौर करने वाली बात सामने आई है. भारत को मिलने वाले कुल विदेशी निवेश का एक तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा, यानी 100 में से 33 रुपये, सिर्फ दो देशों – अमेरिका और सिंगापुर से आ रहा है.

बुधवार को जारी आरबीआई की ‘सर्वे ऑफ फॉरेन लायबिलिटी एंड एसेट’ (FLA) 2024-25 की यह अस्थायी रिपोर्ट, हमारी अर्थव्यवस्था के विदेशी रिश्तों की एक गहरी झलक पेश करती है. यह दिखाती है कि किन देशों का भरोसा भारत की विकास गाथा पर सबसे अटूट है और वे अपना पैसा कहाँ लगा रहे हैं.

अमेरिका ने फिर दिखाई बादशाहत

आरबीआई के ये ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का आंकड़ा बढ़कर 68.75 लाख करोड़ रुपये के विशाल स्तर तक पहुँच गया है. यह पिछले वित्त वर्ष (2023-24) के 61.88 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले एक शानदार उछाल है. बाजार मूल्य के आधार पर यह 11.1 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि को दर्शाता है.

इस विशाल पूंजी में सबसे बड़ा हिस्सा (20 प्रतिशत) अमेरिका का है. अमेरिका लगातार भारत की आर्थिक कहानी पर अपना सबसे बड़ा दांव लगा रहा है, जो दोनों देशों के बीच गहरे होते आर्थिक संबंधों का प्रतीक है.

इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर सिंगापुर (14.3 प्रतिशत) मजबूती से कायम है. अगर सिर्फ इन दोनों देशों को मिला दें, तो भारत के कुल एफडीआई का लगभग 34.3 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं के पास है. यह एक बड़ी एकाग्रता है जो दिखाती है कि भारत का विदेशी निवेश कुछ प्रमुख सहयोगियों पर कितना निर्भर है.

इन दो दिग्गजों के बाद, मॉरीशस (13.3 प्रतिशत), ब्रिटेन (11.2 प्रतिशत) और नीदरलैंड (9 प्रतिशत) जैसे देश भी प्रमुख निवेशकों की सूची में मजबूती से खड़े हैं. यह सर्वेक्षण 45,702 भारतीय कंपनियों से मिले जवाबों पर आधारित है, जिनमें से 41,517 संस्थाओं के खातों में या तो एफडीआई था या उन्होंने विदेश में निवेश किया था, जो इसे बेहद विश्वसनीय बनाता है.

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बना निवेशकों का ‘फेवरेट’

यह जानना भी ज़रूरी है कि यह लाखों करोड़ का विदेशी पैसा आखिर जा कहां रहा है? क्या यह सिर्फ सॉफ्टवेयर या सर्विस सेक्टर में आ रहा है, जैसा कि आम तौर पर माना जाता है? आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आने वाले कुल विदेशी निवेश का सबसे बड़ा हिस्सा विनिर्माण यानी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मिला है. यह कुल एफडीआई इक्विटी का 48.4 प्रतिशत (बाजार मूल्य पर) है, जो लगभग आधा है. यह एक बहुत बड़ा और अहम आंकड़ा है.

इसका सीधा मतलब है कि विदेशी निवेशक भारत की औद्योगिक क्षमता, यहां के कारखानों और उत्पादन क्षमता पर भरोसा जता रहे हैं. यह सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ (make in india) पहल के लिए एक बड़ी सफलता है. जब मैन्युफैक्चरिंग में निवेश बढ़ता है, तो यह उम्मीद की जाती है कि इससे देश में नए और स्थायी रोज़गार पैदा होंगे, आधुनिक तकनीक का हस्तांतरण होगा और भारत दुनिया के लिए एक बड़ा उत्पादन केंद्र (production hub) बनने की राह पर आगे बढ़ेगा. वहीं सेवा क्षेत्र (Service Sector) इस मामले में दूसरे स्थान पर रहा.