×

भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी निवेश का नया अध्याय

भारत की संसद ने नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी को मंजूरी दी है, जिससे देश की ऊर्जा नीति में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। सरकार इसे स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार का एक बड़ा कदम मानती है, जबकि विपक्ष ने सुरक्षा से जुड़े प्रावधानों को कमजोर करने का आरोप लगाया है। इस विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा से मंजूरी मिली है और अब राष्ट्रपति की स्वीकृति का इंतजार है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत को वैश्विक परमाणु ऊर्जा बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बना सकता है। हालांकि, विपक्षी दलों ने कई चिंताएँ उठाई हैं, जिससे इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक चर्चा की संभावना बढ़ गई है।
 

संसद में ऐतिहासिक निर्णय

गुरुवार को संसद की कार्यवाही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है, जिसने देश की ऊर्जा नीति में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दिया है। भारत की संसद ने एक नया कानून पारित किया है, जिसके तहत नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी को अनुमति दी गई है। सरकार इसे स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार की दिशा में एक बड़ा कदम मानती है, जबकि विपक्ष ने सुरक्षा और जवाबदेही से जुड़े प्रावधानों को कमजोर करने का आरोप लगाया है।


विधेयक की मंजूरी

यह विधेयक बुधवार को लोकसभा और गुरुवार को राज्यसभा से पारित हुआ है। अब इसे कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति का इंतजार है, जिसे आमतौर पर औपचारिकता माना जाता है। सरकार का कहना है कि यह कदम भारत को वैश्विक परमाणु ऊर्जा बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा, खासकर जब कई देश जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए परमाणु ऊर्जा पर पुनर्विचार कर रहे हैं।


परिवर्तन का महत्व

यह बदलाव दशकों से चले आ रहे उस मॉडल से हटने का संकेत देता है, जिसमें परमाणु ऊर्जा पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में थी। सरकार के समर्थक मानते हैं कि निजी क्षेत्र की भागीदारी से निवेश, तकनीक और दक्षता में वृद्धि होगी। वहीं, आलोचकों का कहना है कि इससे स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े जोखिम बढ़ सकते हैं।


विशेषज्ञों की राय

ऊर्जा और पर्यावरण नीति के विशेषज्ञ कार्तिक गणेशन के अनुसार, यह निर्णय निजी कंपनियों को स्पष्ट संकेत देता है कि भारत परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में व्यवसाय के लिए तैयार है। केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में कहा कि यह विधेयक भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों और मौजूदा तकनीकी व आर्थिक हालात को ध्यान में रखकर लाया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा और नियामक ढांचे से कोई समझौता नहीं किया गया है।


भारत का निवेश

हाल के महीनों में, भारत ने परमाणु ऊर्जा से संबंधित शोध और सहयोगी गतिविधियों के लिए दो अरब डॉलर से अधिक का निवेश करने का वादा किया है। भारत दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है, और उसकी 75 प्रतिशत से अधिक बिजली अब भी कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों से उत्पन्न होती है। सरकार का लक्ष्य है कि 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाए, जिससे करोड़ों घरों को बिजली मिल सके।


विपक्ष की चिंताएँ

हालांकि, विपक्षी दलों ने विधेयक के कई प्रावधानों पर सवाल उठाए हैं। आम आदमी पार्टी के सांसद अशोक मित्तल ने कहा कि परमाणु संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर कानून में पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं हैं। इसी तरह, परमाणु ऊर्जा के खिलाफ लंबे समय से सक्रिय कार्यकर्ता जी. सुंदरराजन ने इसे खतरनाक कानून बताते हुए कहा कि इससे कंपनियों की जवाबदेही कम होती है और आम नागरिकों के लिए मुआवजे का रास्ता भी सीमित हो जाता है।


राजनीतिक और सामाजिक चर्चा

सरकार ने विपक्ष की उस मांग को स्वीकार नहीं किया, जिसमें विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजने की बात कही गई थी। इस प्रकार, यह कानून भारत की ऊर्जा नीति, निजी निवेश और सुरक्षा पर बहस का केंद्र बन गया है, और भविष्य में इस पर राजनीतिक और सामाजिक चर्चा तेज होने की संभावना है।