भारत में परमाणु ऊर्जा के लिए नया कानून: SHANTI विधेयक का महत्व
SHANTI विधेयक का पारित होना
राज्यसभा ने चार घंटे की विस्तृत चर्चा के बाद ‘सस्टेनेबल हार्नेसिंग ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) विधेयक’ को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। विपक्ष के इस विधेयक को संसदीय समिति को भेजने और संशोधन लाने के प्रयासों को अस्वीकार कर दिया गया। यह विधेयक भारत की परमाणु नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है, क्योंकि यह पहली बार किसी परमाणु संयंत्र के पूरे जीवन चक्र, जिसमें निर्माण, संचालन, अपशिष्ट प्रबंधन और डी-कमीशनिंग शामिल हैं, के लिए सुरक्षा निगरानी को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाता है। पहले की व्यवस्था मुख्यतः कार्यपालिका के विवेक और दुर्घटनाओं के बाद की जवाबदेही पर निर्भर थी।
SHANTI विधेयक का उद्देश्य
SHANTI विधेयक का मुख्य उद्देश्य 2047 तक भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करना है। इसके अंतर्गत नागरिक परमाणु क्षेत्र में सीमित निजी भागीदारी की अनुमति दी जाएगी। विपक्ष ने सुरक्षा और दायित्व को लेकर चिंताएँ व्यक्त की हैं, लेकिन सरकार का कहना है कि यह कानून एक स्थायी और अनिवार्य सुरक्षा तंत्र स्थापित करता है, जो केवल एकमुश्त अनुमतियों पर निर्भर नहीं रहेगा। विधेयक में 'परमाणु क्षति के लिए एक व्यावहारिक नागरिक दायित्व व्यवस्था' का प्रावधान है और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) को कानूनी दर्जा दिया गया है।
विधेयक की विशेषताएँ
पहले के कानूनों, जैसे कि परमाणु ऊर्जा अधिनियम और 2010 के सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज (CLND) अधिनियम में सुरक्षा को मुख्यतः दुर्घटना के बाद की जिम्मेदारी के रूप में देखा गया था। SHANTI विधेयक इस दृष्टिकोण को बदलते हुए 'विधिक, जीवन चक्र आधारित नियामक व्यवस्था' लागू करता है। अब निर्माण, संचालन, परिवहन, भंडारण, डी-कमीशनिंग या अपशिष्ट प्रबंधन में विकिरण जोखिम होने पर अलग और स्पष्ट सुरक्षा स्वीकृति अनिवार्य होगी।
कानूनी जटिलताओं का समाधान
यह विधेयक नियमन, प्रवर्तन, नागरिक दायित्व और विवाद निपटान को एक ही कानून के तहत समाहित करता है, जिससे कानूनी जटिलताएँ और अनुपालन की अनिश्चितता घटेगी। AERB को निरीक्षण, जांच, बाध्यकारी निर्देश जारी करने और सुरक्षा मानकों के उल्लंघन पर संचालन निलंबित या रद्द करने का स्पष्ट अधिकार मिलेगा। दुर्घटना रोकथाम को मजबूती देते हुए गंभीर जोखिम स्थितियों को, वास्तविक क्षति नहीं होने पर भी, परमाणु घटना माना जाएगा। हालांकि, ईंधन संवर्धन, प्रयुक्त ईंधन का पुनःप्रसंस्करण और भारी जल उत्पादन जैसे मुख्य कार्य केंद्र सरकार के नियंत्रण में ही रहेंगे।
भारत की ऊर्जा नीति में बदलाव
मौजूदा ढांचे के साथ, परमाणु ऊर्जा का दीर्घकाल में ताप विद्युत का विकल्प बनना कठिन था। भारत ने दशकों में केवल लगभग 8 गीगावॉट परमाणु क्षमता जोड़ी है, जबकि 2047 तक इसे 100 गीगावॉट और 2070 तक 300 गीगावॉट या उससे अधिक तक ले जाने के लिए बड़े सुधार जरूरी थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विधेयक को देश के तकनीकी परिदृश्य के लिए 'परिवर्तनकारी क्षण' बताया है।
SHANTI विधेयक का सामरिक महत्व
SHANTI विधेयक केवल एक तकनीकी कानून नहीं है; यह भारत की रणनीतिक सोच का एलान है। जलवायु संकट, ऊर्जा असुरक्षा और भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण के दौर में, भारत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि ऊर्जा आत्मनिर्भरता अब विकल्प नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का अनिवार्य स्तंभ है। यह निर्णय परमाणु ऊर्जा को मुख्यधारा में लाने का साहसी और आक्रामक कदम है।
विपक्ष की चिंताएँ
विपक्ष की सुरक्षा संबंधी चिंता सैद्धांतिक रूप से उचित है, लेकिन व्यावहारिक जवाब SHANTI विधेयक देता है। यह कानून बताता है कि सुरक्षा अब बाध्यकारी शर्त है। AERB को ताकत देने जैसा नियमन भारत को बड़े लक्ष्य साधने की हिम्मत देता है। SHANTI विधेयक भारत का परमाणु घोषणापत्र है जो देश को ऊर्जा के मोर्चे पर आत्मनिर्भर बनायेगा।