भारत में नक्सलवाद: उपराष्ट्रपति चुनाव और सुरक्षा की चुनौतियाँ
नक्सलवाद की चुनौतियाँ और उपराष्ट्रपति चुनाव
भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सलवाद एक गंभीर समस्या बनी हुई है। पिछले बीस वर्षों में, इसने मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में हिंसा को बढ़ावा दिया है और कई राज्यों की लोकतांत्रिक संस्थाओं को चुनौती दी है। नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में नीति-निर्माताओं, न्यायपालिका और संवैधानिक अधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इस संदर्भ में, उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सामने आए उम्मीदवारों की गतिविधियों ने नक्सलवाद के मुद्दे पर चर्चा को फिर से जीवित कर दिया है। एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने नक्सलवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए महाराष्ट्र सरकार के कानून को राष्ट्रपति को भेजा, जबकि न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी पर आरोप है कि उनकी न्यायिक दृष्टि ने छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर किया।
न्यायमूर्ति रेड्डी का सलवा जुडूम पर निर्णय
साल 2011 में, न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी की पीठ ने सलवा जुडूम पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया था। इस निर्णय में आदिवासी युवाओं को 'विशेष पुलिस अधिकारी' बनाकर उन्हें माओवादी विरोधी अभियानों में शामिल करने की प्रक्रिया को असंवैधानिक घोषित किया गया। इस फैसले का तर्क था कि राज्य हिंसा के माध्यम से हिंसा का प्रतिकार नहीं कर सकता और गरीब आदिवासियों को संघर्ष का औजार नहीं बनाया जा सकता। हालांकि यह दृष्टिकोण मानवीय था, लेकिन व्यावहारिक रूप से इसने नक्सलवाद के खिलाफ राज्य के अभियान को कमजोर किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि यदि सलवा जुडूम को रोका नहीं गया होता, तो 2020 तक नक्सलवाद का समूल नाश हो चुका होता।
सीपी राधाकृष्णन का नक्सलवाद-विरोधी कदम
इसके विपरीत, सीपी राधाकृष्णन का हालिया कदम नक्सलवाद-विरोधी प्रयासों को सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उन्होंने महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक 2024 को राष्ट्रपति के पास भेजा है, जो शहरी क्षेत्रों में सक्रिय वामपंथी उग्रवादी संगठनों पर नियंत्रण लगाने का प्रयास करता है। विपक्ष और नागरिक संगठनों ने इसे असहमति की आवाज़ दबाने का उपकरण बताया है, लेकिन यह सच है कि शहरी नक्सल नेटवर्क ज़मीनी हिंसा को बढ़ावा देता है। सीपी राधाकृष्णन ने इस विधेयक को सीधे लागू करने के बजाय राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजा, जो संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान करता है।
संविधान और सुरक्षा के बीच संतुलन
भारत में नक्सलवाद के खिलाफ संघर्ष केवल सैन्य या पुलिस कार्रवाई तक सीमित नहीं है; यह न्यायपालिका, विधायिका और संवैधानिक अधिकारियों के दृष्टिकोण से भी प्रभावित होता है। जहाँ न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी का निर्णय व्यावहारिक रूप से नक्सलियों के लिए सहायक सिद्ध हुआ, वहीं सीपी राधाकृष्णन का कदम नक्सलवाद-विरोधी प्रयासों को राजनीतिक और संवैधानिक मजबूती प्रदान करता है। यह दोनों उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि नक्सलवाद जैसी राष्ट्रीय चुनौती से निपटने में संवैधानिक आदर्शों और सुरक्षा की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
उपराष्ट्रपति चुनाव की तैयारी
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच मुकाबला तय हो चुका है। चुनाव नौ सितंबर को होगा। रिटर्निंग ऑफिसर के कार्यालय ने बताया है कि दोनों उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जांच के बाद सभी चार सेट सही पाए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा किया जाता है।