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भारत में दिल की बीमारियों का बढ़ता खतरा: कारण और समाधान

भारत में दिल की बीमारियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर युवा वर्ग में। कोरोना महामारी के बाद से हार्ट अटैक से होने वाली मौतों में वृद्धि हुई है। प्रसिद्ध कार्डियक सर्जन डॉ. रमाकांत पांडा के अनुसार, जीवनशैली में बदलाव और खान-पान की आदतें इस समस्या को बढ़ा रही हैं। जानें कि कैसे आनुवंशिकता और जीवनशैली के कारक इस स्वास्थ्य संकट में योगदान दे रहे हैं।
 

दिल की बीमारियों का बढ़ता प्रकोप

दिल की बीमारियां भारत और विश्वभर में मृत्यु का एक प्रमुख कारण बनती जा रही हैं। कोरोना महामारी के बाद, हार्ट अटैक से होने वाली मौतों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, 40 वर्ष से कम आयु के लोग भी इस खतरे का सामना कर रहे हैं। भारत में, आनुवंशिक प्रवृत्ति हार्ट अटैक का एक बड़ा कारण है, लेकिन जीवनशैली और खान-पान में लापरवाही इस स्थिति को और गंभीर बना रही है.


भारतीय उपमहाद्वीप में हार्ट डिजीज की संवेदनशीलता

प्रसिद्ध कार्डियक सर्जन डॉ. रमाकांत पांडा ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में बताया कि भारतीय उपमहाद्वीप के लोग हार्ट डिजीज के प्रति क्यों अधिक संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि 4-5 दशक पहले, भारतीय अस्पतालों में हार्ट पेशेंट बहुत कम होते थे; इसके बजाय, वाल्व की समस्याएं अधिक देखी जाती थीं, और शिक्षकों का मानना था कि ब्लॉकेज की समस्याएं 'पश्चिमी समस्या' हैं.


पिछले 50 वर्षों में बदलाव

डॉ. पांडा के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में सब कुछ बदल गया है। आज, भारत में हार्ट की बीमारियां सबसे अधिक पाई जाती हैं। कुछ लोग इसे आनुवंशिक मानते हैं, लेकिन डॉ. पांडा का मानना है कि यह मुख्य रूप से जीवनशैली में बदलाव से संबंधित है, न कि आनुवंशिकी से.


हार्ट डिजीज के बढ़ने के कारण

दिल की बीमारियों में वृद्धि का मुख्य कारण हमारी जीवनशैली में बदलाव है। इसमें व्यायाम की कमी, खान-पान की आदतों में बदलाव (जैसे ऑर्गेनिक फूड्स से प्रोसेस्ड फूड्स की ओर बढ़ना), आर्टिफिशियल शुगर का बढ़ता उपयोग, तनाव का स्तर बढ़ना, तंबाकू का सेवन, और नींद की कमी शामिल हैं। चीनी की खपत इतनी बढ़ गई है कि जो मात्रा हमारे पूर्वज एक महीने में खाते थे, हम एक दिन में खा रहे हैं.


युवाओं में बढ़ती हार्ट डिजीज

डॉ. पांडा ने युवाओं में हार्ट डिजीज के मामलों में वृद्धि देखी है। 1993 में, वह साल में एक बार 30 वर्ष से कम उम्र के मरीजों को देखते थे; आज, वह उन्हें हर दिन देखते हैं। हाल ही में, उन्होंने 21 और 23 वर्ष के दो युवकों को देखा, जिन्हें बाईपास सर्जरी की आवश्यकता थी.