भारत में डॉक्टरों की गिरफ्तारी: आतंकवाद और समानता की राजनीति पर सवाल
डॉक्टरों की गिरफ्तारी से बढ़ी चिंता
हाल ही में कुछ डॉक्टरों की गिरफ्तारी ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। ये डॉक्टर आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े हुए थे, और इनमें से कुछ का संबंध दिल्ली में हुए बम धमाके से भी बताया जा रहा है। इस स्थिति ने समाज और देश की सुरक्षा को लेकर चिंताओं को और बढ़ा दिया है। गुजरात एटीएस द्वारा पकड़े गए एक डॉक्टर का मामला तो और भी गंभीर है, क्योंकि वह जान बचाने के प्रशिक्षण के बजाय मौत का सामान बनाने में लगा हुआ था। यह सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है। जब आप इन घटनाओं को एक साथ देखेंगे, तो आपको यह समझ में आएगा कि समानता की अवधारणा अब देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गई है।
समानता की राजनीति का खतरनाक पहलू
इतिहास यह दर्शाता है कि जब भी हमने गीता, रामायण, बाइबल, कुरान और हदीस को एक समान बताने की कोशिश की, तब हमने अपनी जड़ों को कमजोर किया। दिल्ली में हुई घटना और विभिन्न स्थानों से मिले विस्फोटक पदार्थ यह साबित करते हैं कि समानता की राजनीति और सहिष्णुता की अंधी दौड़ देश के लिए आत्मघाती साबित हो रही है। यह केवल कानून-व्यवस्था की विफलता नहीं है, बल्कि यह नीतिगत मूर्खता का परिणाम भी है। जब तक हम शिक्षा के नाम पर कट्टरता को बढ़ावा देते रहेंगे और यह झूठा प्रचार करते रहेंगे कि मदरसे और गुरुकुल एक समान हैं, तब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा।
आवश्यकता है नीति और सोच में बदलाव की
अब समय आ गया है कि देश इस झूठे उदारवाद से बाहर निकले। राष्ट्रहित में नीतियों और सोच को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। शिक्षण संस्थानों की निगरानी को सख्त बनाना होगा, और धार्मिक शिक्षाओं के नाम पर विष फैलाने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी होगी। समानता का अर्थ अंधापन नहीं होता, और न ही विवेक का त्याग होता है। सवाल यह नहीं है कि डॉक्टर कौन थे, बल्कि यह है कि हम कब तक सोते रहेंगे? यदि हम अब भी जागरूक नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ियों को गंभीर संकट में डाल देंगे।