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भारत में जेलों में कट्टरपंथी विचारधाराओं का प्रसार: सरकार की नई पहल

भारत में जेलों में कट्टरपंथी विचारधाराओं के प्रसार की समस्या बढ़ती जा रही है। इस पर काबू पाने के लिए, सरकार ने राज्यों से त्वरित कदम उठाने का आग्रह किया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने डि-रेडिकलाइजेशन की प्रक्रिया को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि कमजोर मानसिकता वाले कैदियों को मुख्यधारा में लौटाया जा सके। इसके अलावा, उच्च-जोखिम कैदियों को अलग रखने और निगरानी तंत्र को मजबूत करने की सिफारिश की गई है। जानें इस नई पहल के पीछे की रणनीतियाँ और इसके संभावित प्रभाव।
 

जेलों में कट्टरपंथी विचारों का खतरा

दुनिया भर में यह देखा जा रहा है कि जेलों में बंद कट्टरपंथी अन्य कैदियों को भी प्रभावित कर उन्हें गलत दिशा में ले जा रहे हैं। जेलों में कैदियों के कट्टरपंथी बनने की घटनाएं अब एक गंभीर चुनौती बन चुकी हैं। यह प्रवृत्ति आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है, इसलिए भारत सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस समस्या के समाधान के लिए त्वरित कदम उठाने का अनुरोध किया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गृह सचिवों को एक परामर्श जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि जेलों में कमजोर मानसिकता वाले व्यक्तियों में उग्र विचारधारा के प्रसार को रोकना और उन्हें मुख्यधारा में लौटाने के लिए ‘डि-रेडिकलाइजेशन’ की प्रक्रिया अपनाना आवश्यक है। यह न केवल सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगा।




जेल एक नियंत्रित वातावरण होता है, जहाँ सामाजिक अलगाव, समूह मनोवृत्ति और निगरानी की सीमितता जैसी स्थितियाँ अतिवादी विचारों के पनपने के लिए अनुकूल होती हैं। कई कैदी, जो पहले से ही हताशा, समाज से कटाव या हिंसात्मक प्रवृत्तियों से ग्रस्त होते हैं, ऐसे माहौल में उग्रपंथी विचारधाराओं के प्रभाव में आ जाते हैं। गृह मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि कुछ मामलों में कट्टरपंथी कैदी हिंसात्मक गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं, जैसे कि जेल स्टाफ पर हमले, अन्य कैदियों को नुकसान पहुँचाना या बाहरी नेटवर्क के साथ मिलकर देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना।


गृह मंत्रालय की नई पहल


गृह मंत्रालय ने ‘मॉडल प्रिजन मैनुअल 2016’ और ‘मॉडल प्रिज़न्स एंड करेक्शनल सर्विसेज एक्ट, 2023’ का उल्लेख करते हुए बताया कि इन दस्तावेजों में उच्च-जोखिम कैदियों और उग्रवादियों को अन्य कैदियों से अलग रखने के लिए विशेष सुरक्षा वाले कारागारों की व्यवस्था की सिफारिश की गई है। मंत्रालय ने राज्य सरकारों से अपेक्षा की है कि वे कट्टरपंथी प्रवृत्ति वाले कैदियों की पहचान, निगरानी और परामर्श की प्रभावी व्यवस्था करें।




गृह मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया है कि जो कैदी उग्र विचारधाराओं का प्रचार कर अन्य कैदियों को प्रभावित कर सकते हैं, उन्हें सामान्य कैदियों से अलग रखा जाए। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र हाई सिक्योरिटी प्रिजन कॉम्प्लेक्स स्थापित करने पर विचार करना चाहिए ताकि आतंकवादियों और कट्टरपंथियों को अलग रखकर उनके प्रभाव को सीमित किया जा सके। परामर्श में कहा गया है कि इन कैदियों पर निगरानी उपकरणों और खुफिया तंत्र की सहायता से कड़ी निगरानी रखी जाए और किसी भी उग्रवादी नेटवर्क की पहचान कर उसे समय रहते समाप्त किया जाए।




मोदी सरकार का मानना है कि कैदियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण, शिक्षा और पुनर्वास कार्यक्रमों में शामिल करके उनकी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ा जा सकता है। इसके साथ ही, परिवार से निरंतर संपर्क बनाए रखने की सुविधा से उनकी भावनात्मक स्थिरता को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे समाज में सफल पुनर्वास संभव हो सकेगा।




कुल मिलाकर, कैदियों के सुधार की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम समयानुकूल और आवश्यक है। अब राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे इन दिशा-निर्देशों को गंभीरता से लागू करें और जेलों को केवल सजा के केंद्र न बनाकर सुधार और पुनर्वास के स्थलों में परिवर्तित करें।