भारत ने चिनाब नदी पर जलविद्युत परियोजना को दी मंजूरी, पाकिस्तान को लगा बड़ा झटका
भारत का नया कदम
भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद चिनाब नदी पर 1,856 मेगावाट की सावलकोट जलविद्युत परियोजना को मंजूरी देकर पाकिस्तान को एक बड़ा झटका दिया है। इस परियोजना के लिए अंतरराष्ट्रीय निविदाएं आमंत्रित की जा चुकी हैं। सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद पाकिस्तान पहले से ही चिंतित है और धमकी भरे बयान दे रहा है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अब पश्चिमी नदियों के जल का अधिकतम उपयोग करेगा।
सिंधु जल संधि का महत्व
1960 की सिंधु जल संधि के तहत भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदियों पर पूर्ण अधिकार दिया गया था, जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु पर सीमित उपयोग का अधिकार था। पाकिस्तान को इन पश्चिमी नदियों के जल पर प्राथमिक अधिकार प्राप्त था। वर्षों से पाकिस्तान ने इस संधि का उपयोग भारत के ऊर्जा और सिंचाई परियोजनाओं को रोकने के लिए किया है। लेकिन अब भारत ने इस संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर अपने अधिकारों का पूरा उपयोग करने का निर्णय लिया है।
सावलकोट परियोजना का महत्व
सावलकोट परियोजना देश की सबसे बड़ी रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजना होगी, जिसकी लागत 22,704.8 करोड़ रुपये आंकी गई है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में चिनाब नदी पर बनाई जाएगी। इससे न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश की ऊर्जा जरूरतें पूरी होंगी। यह परियोजना पाकिस्तान को जल-नीति के मोर्चे पर एक स्पष्ट संदेश भी देगी।
पाकिस्तान की चिंताएं
भारत द्वारा पश्चिमी नदियों के जल का अधिक उपयोग करने से पाकिस्तान के सिंचाई तंत्र पर असर पड़ेगा। यह कदम भारत की बदलती रणनीति को दर्शाता है कि वह जल को भी एक रणनीतिक साधन के रूप में उपयोग करने को तैयार है। पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में भारत विरोध का मुद्दा भुनाया जाता है, जिससे यह परियोजना वहां की सरकार के लिए एक और चुनौती बन गई है।
परियोजना का इतिहास
सावलकोट परियोजना को 1984 में पहली बार परिकल्पित किया गया था और 1985 में इसे एनएचपीसी को सौंपा गया। 1997 में यह परियोजना जम्मू-कश्मीर स्टेट पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के अधीन कर दी गई। कई बाधाओं के कारण यह परियोजना समय पर शुरू नहीं हो सकी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
रामबन के विधायक अर्जुन सिंह राजू ने इसे "ऐतिहासिक क्षण" करार दिया है, जबकि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसे राज्य और राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बताया है। वन परामर्श समिति ने 847 हेक्टेयर वन भूमि के उपयोग को "सैद्धांतिक स्वीकृति" दी है, जिससे परियोजना के लिए एक बड़ी बाधा दूर हुई है।
भविष्य की चुनौतियां
भारत का यह कदम पाकिस्तान के लिए केवल तकनीकी झटका नहीं, बल्कि एक रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक दबाव भी है। सावलकोट परियोजना अब जमीन पर उतरने को तैयार है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि निविदा प्रक्रिया, निर्माण कार्य और पाकिस्तान की संभावित प्रतिक्रियाएं इस परियोजना की गति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।