भारत-चीन संबंधों में दलाई लामा का उत्तराधिकार विवाद
भारत के विदेश मंत्री की चीन यात्रा
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया यात्रा को भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। हालांकि, इस यात्रा से पहले, चीनी दूतावास ने दलाई लामा के उत्तराधिकार के मुद्दे पर भारत को सख्त चेतावनी दी है। चीन ने इसे अपने आंतरिक मामले के रूप में पेश करते हुए कहा है कि 'शीज़ांग कार्ड खेलना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।'
दलाई लामा का जन्मदिन और विवाद
इस महीने की शुरुआत में, तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने धर्मशाला में अपने 90वें जन्मदिन का जश्न मनाया। इस अवसर पर, उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके उत्तराधिकार में चीन की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू समेत कई प्रमुख नेता उपस्थित थे। तिब्बती मान्यता के अनुसार, किसी वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु की आत्मा मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेती है, जबकि चीन का दावा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकार को उसके नेताओं की स्वीकृति की आवश्यकता है।
चीनी दूतावास की प्रतिक्रिया
चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि भारत के कुछ रणनीतिक और शैक्षणिक समुदायों ने दलाई लामा के पुनर्जन्म पर अनुचित टिप्पणियां की हैं। उन्होंने कहा कि दलाई लामा का पुनर्जन्म और उत्तराधिकार चीन का आंतरिक मामला है, जिसमें किसी भी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है।
भारत-चीन संबंधों पर प्रभाव
यह घटना उस समय हुई है जब एस. जयशंकर 15 जुलाई, 2025 को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन के तियानजिन जा रहे हैं। यह यात्रा 2020 में लद्दाख में हुए सीमा संघर्ष के बाद से दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय बैठक है। इस चेतावनी से पहले से ही नाजुक संबंधों में और जटिलता आ सकती है।
भारत का दृष्टिकोण
भारत के विदेश मंत्रालय ने 4 जुलाई, 2025 को दलाई लामा के जन्मदिन से पहले कहा कि नई दिल्ली धर्म और आस्था के मुद्दों पर कोई रुख नहीं अपनाता। हालांकि, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, जो स्वयं बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, ने दलाई लामा के बयान का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि दलाई लामा और उनके संगठन को उनके उत्तराधिकार पर निर्णय लेने का अधिकार है।
राजनीतिक महत्व
दलाई लामा का निर्वासन और तिब्बती शरणार्थियों की उपस्थिति भारत को चीन के खिलाफ एक रणनीतिक बढ़त प्रदान करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा भारत-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण कारक है। चीन की चेतावनी इस बात का संकेत है कि दोनों देशों के बीच संबंध अभी भी नाजुक हैं, और जयशंकर की यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा होने की संभावना है।