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भारत के मुख्य न्यायाधीश ने संविधान की सर्वोच्चता पर जोर दिया

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने हाल ही में संविधान की सर्वोच्चता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि संसद केवल संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति गवई ने न्यायपालिका की भूमिका और स्वतंत्रता के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उनके विचारों से यह स्पष्ट होता है कि न्यायाधीशों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की आवश्यकता है, बिना जनभावनाओं के प्रभाव में आए। इस महत्वपूर्ण बयान के पीछे की सोच और न्यायपालिका की भूमिका को जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें।
 

संविधान की सर्वोच्चता पर मुख्य न्यायाधीश का बयान

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने हाल ही में कहा कि संसद की तुलना में संविधान की सर्वोच्चता अधिक महत्वपूर्ण है। अमरावती में बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में बोलते हुए, उन्होंने बताया कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ - कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका - संविधान के अधीन कार्य करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कई लोग मानते हैं कि संसद सर्वोच्च है, लेकिन उनके अनुसार, भारत का संविधान सर्वोच्च है।


न्यायमूर्ति गवई ने यह स्पष्ट किया कि संसद केवल संशोधन करने का अधिकार रखती है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। 'मूल ढांचे' का सिद्धांत 1973 में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय से आया है, जिसमें कहा गया था कि संविधान का मूल ढांचा अपरिवर्तनीय है। उन्होंने यह भी बताया कि न्यायाधीशों को संविधान द्वारा एक विशेष कर्तव्य सौंपा गया है और केवल सरकार के खिलाफ आदेश पारित करना स्वतंत्रता नहीं है।


उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि लोग उनके निर्णयों के बारे में क्या सोचते हैं। स्वतंत्रता का अर्थ है स्वतंत्र रूप से विचार करना और निर्णय लेना, न कि जनभावनाओं के आधार पर।