भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद की जयंती: शिक्षा में उनके योगदान की कहानी
मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती
भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद (फाइल फोटो)
आज 11 नवंबर को भारत अपने पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती मनाता है। उनके योगदान को याद करते हुए देशभर में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। आजाद न केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से भारत को अपना पहला स्वतंत्र शिक्षा बोर्ड, CISCE (काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशंस) प्राप्त हुआ।
CISCE बोर्ड का परिचय
1958 में नई दिल्ली के धौलपुर हाउस से CISCE की स्थापना हुई। इसका पहला कार्यालय शाहजहां रोड पर एक किराए के कमरे में खोला गया था। प्रारंभ में लगभग 300 स्कूल इससे जुड़े थे, जो पहले कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से संबद्ध थे। आजाद का उद्देश्य था कि भारत की अपनी परीक्षा प्रणाली हो, ताकि देश विदेशी नियंत्रण से मुक्त हो सके। उस समय अधिकांश भारतीय स्कूल ब्रिटिश कैम्ब्रिज प्रणाली के अधीन थे, और परीक्षा प्रश्न पत्र इंग्लैंड में तैयार होते थे।
शिक्षा में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम
अबुल कलाम आजाद के नेतृत्व में CISCE ने ICSE (10वीं) और ISC (12वीं) परीक्षाएं शुरू कीं। प्रारंभ में प्रश्न पत्र इंग्लैंड से आते थे, लेकिन 1975 में पहली बार भारत में ही प्रश्न पत्र तैयार किए गए। 1966 में भारतीय परीक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया ताकि देश की शिक्षा प्रणाली पूरी तरह से भारतीय नियंत्रण में आ सके। यह बदलाव भारतीय शिक्षा के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।
भारतीय परीक्षा बोर्ड का विचार
1952 में अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में हुई ऑल इंडिया सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन कॉन्फ्रेंस में भारतीय परीक्षा बोर्ड की आवश्यकता पर चर्चा की गई। बाद में CISCE के संस्थापक चेयरमैन फ्रेंक एंथनी और सचिव AET बैरो ने इसे साकार रूप दिया। उनके प्रयासों और आजाद के दृष्टिकोण से देश का पहला स्वतंत्र शिक्षा बोर्ड अस्तित्व में आया।
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