भारत की वायु रक्षा में नई ऊँचाइयाँ: 'आकाश प्राइम' मिसाइल प्रणाली का आगमन
भारत की सैन्य क्षमताओं में वृद्धि
भारत ने अपनी सैन्य तैयारियों को मजबूत करने और स्वदेशी रक्षा प्रणालियों में महत्वपूर्ण प्रगति की दिशा में एक और कदम बढ़ाया है। भारतीय सेना जल्द ही 'आकाश प्राइम' मिसाइल प्रणाली की दो रेजीमेंट्स को शामिल करने जा रही है। यह प्रणाली विशेष रूप से चीन से सटी लद्दाख की ऊँचाई वाली सीमाओं पर वायु रक्षा के लिए विकसित की गई है.
परीक्षण और उपलब्धियाँ
पिछले बुधवार को लद्दाख में सेना ने इस प्रणाली का दो बार परीक्षण किया। इस दौरान, 15,000 फीट की ऊँचाई पर तेज गति वाले ड्रोन जैसे लक्ष्यों को सफलतापूर्वक नष्ट किया गया। रक्षा मंत्री ने इसे भारत की वायु रक्षा क्षमता के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया.
आकाश प्राइम प्रणाली की विशेषताएँ
'आकाश प्राइम' वास्तव में 'आकाश' मिसाइल प्रणाली का उन्नत संस्करण है। जबकि मूल प्रणाली का उपयोग पहले से ही भारतीय थलसेना और वायुसेना द्वारा किया जा रहा है, 'प्राइम' संस्करण को 4,500 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। इसमें आधुनिक ग्राउंड सिस्टम, रडार और नई पीढ़ी के रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर लगे हैं, जो दुश्मन के विमानों, हेलीकॉप्टरों और ड्रोन को 360° कोण से भेदने की क्षमता रखते हैं.
भविष्य की योजनाएँ
मार्च 2023 में ₹8,160 करोड़ के करार के तहत भारतीय सेना की वायु रक्षा कोर में इस प्रणाली की दो रेजीमेंट स्थापित की जा रही हैं। इसके अलावा, डीआरडीओ 'आकाश-NG' (नई पीढ़ी) पर भी काम कर रहा है, जिसकी रेंज 30 किलोमीटर है.
अंतरराष्ट्रीय पहचान
आर्मेनिया 'आकाश' प्रणाली का पहला विदेशी ग्राहक बन चुका है, और भारत ने इसे संयुक्त अरब अमीरात को भी प्रस्तावित किया है। यह दर्शाता है कि भारत की मिसाइल तकनीक अब वैश्विक रक्षा बाजार में अपनी पहचान बना रही है.
नवीनतम परीक्षण
हाल ही में, चांदीपुर रेंज, ओडिशा में पृथ्वी-II और अग्नि-I मिसाइलों का सफल परीक्षण किया गया। ये परीक्षण रणनीतिक बल कमान के तहत किए गए थे.
आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम
भारत की तीनों सेनाओं के लिए यह घटनाक्रम संकेत करता है कि देश अब स्वदेशी प्रणालियों के साथ और अधिक सशक्त हो रहा है। यह न केवल सैन्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक कूटनीतिक हैसियत के लिए भी आवश्यक है.