भारत की जामुन वाइन ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में मचाई धूम
अमेरिका में जामुन वाइन का जलवा
अमेरिका वाले पिएंगे भारत के जामुन वाली शराब
भारत में विभिन्न फलों से बनी ‘नॉन-ग्रेप वाइन’ ने विदेशी बाजारों में अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी है। जबकि देश में वाइन की बिक्री की गति थोड़ी धीमी है, भारतीय वाइन निर्माता विदेशों में सफलता का स्वाद चख रहे हैं। ट्रेड थिंक टैंक GTRI के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में वाइन का निर्यात 6.7 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में दोगुना है।
800 पेटी वाइन अमेरिका के लिए भेजी गई
हाल ही में मुंबई से एक विशेष खेप अमेरिका के लिए रवाना हुई है, जिसने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है। शुक्रवार को ‘करी फेवर’ ब्रांड की 800 पेटी वाइन अमेरिका भेजी गई। यह वाइन अंगूर से नहीं, बल्कि जामुन से बनाई गई है। नासिक की सेवन पीक्स वाइनरी में तैयार की गई यह वाइन जल्द ही न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी के चुनिंदा रेस्टोरेंट में उपलब्ध होगी।
इस प्रोजेक्ट से जुड़े कंसल्टेंट अजय शॉ का कहना है कि अमेरिका में उच्च टैक्स और ड्यूटी के बावजूद उन्हें अपनी कीमत प्रतिस्पर्धी रखनी पड़ी। फिर भी, यह सौदा आयातक और निर्माता दोनों के लिए लाभकारी साबित हो रहा है। यह पहली बार है जब जामुन से बनी भारतीय वाइन का निर्यात किया गया है, जो यह दर्शाता है कि भारतीय स्वाद अब वैश्विक स्तर पर पहचान बना रहा है।
कश्मीरी सेब और अल्फांसो आम की भी चर्चा
भारतीय वाइन की सफलता की कहानी केवल जामुन तक सीमित नहीं है। कश्मीरी सेब और रत्नागिरी के अल्फांसो आम से बनी वाइन भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में जा रही है। पुणे स्थित रिदम वाइनरी अपनी अल्फांसो मैंगो वाइन ब्रिटेन को निर्यात कर रही है। वहीं, कश्मीरी सेबों से बनी ‘L74 क्राफ्ट साइडर’ भी ब्रिटिश बाजार में अपनी जगह बना चुकी है।
विटिकल्चरिस्ट नीरज अग्रवाल का मानना है कि इस क्षेत्र में विस्तार की अपार संभावनाएं हैं। उनका कहना है कि विदेशी पर्यटक हमेशा नए स्वादों की खोज में रहते हैं। यही कारण है कि संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड, चीन और फ्रांस जैसे देशों में ‘मेड-इन-इंडिया’ उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। अप्रैल से अक्टूबर के बीच हुई बिक्री ने पूरे वित्त वर्ष 2024-25 के अनुमानित आंकड़ों को भी पीछे छोड़ दिया है।
विदेशों में सफलता की राह
हालांकि, यह यात्रा पूरी तरह से आसान नहीं रही है। नीरज अग्रवाल बताते हैं कि कोरोना काल के दौरान ‘रिज़र्वा जामुन’ नामक घरेलू ब्रांड काफी लोकप्रिय हुआ था, लेकिन उसे भारत में स्थायी सफलता नहीं मिल सकी। भारत में वाइन बाजार बढ़ रहा है, लेकिन यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि यह वृद्धि मुख्य रूप से विदेशी ब्रांड्स के कारण है।
पूर्वोत्तर भारत के उद्यमियों के लिए भी चुनौतियाँ कम नहीं हैं। अरुणाचल प्रदेश की जीरो वैली में बनने वाली कीवी वाइन ‘नारा आबा’ को चीन और ग्रीस में प्रदर्शित किया गया था, लेकिन निर्यात जारी रखना कठिन साबित हुआ। असम के उद्यमी आकाश गोगोई, जो पारंपरिक राइस वाइन ‘साज’ बनाते हैं, का कहना है कि 2022 में सिंगापुर को सैंपल भेजने के बाद भी बात नहीं बनी। उनका मानना है कि जब तक सरकार आर्थिक सहायता नहीं देती, अंतरराष्ट्रीय बाजार में टिके रहना मुश्किल है। फिर भी, यह नया ट्रेंड दर्शाता है कि यदि सही सहयोग मिले, तो भारतीय फल वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकते हैं।
ये भी पढ़ें- सर्दियों में सबकी फेवरेट है ये 71 साल पुरानी शराब, कीमत केवल 355 रुपए