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भारत की कूटनीति: मोदी, जयशंकर और डोभाल की समन्वित रणनीति

भारत का मौजूदा कूटनीतिक कैलेंडर एक अद्वितीय समन्वय का उदाहरण है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी, विदेश मंत्री जयशंकर और NSA डोभाल तीनों समानांतर मोर्चों पर सक्रिय हैं। यह ट्रिपल इंजन रणनीति भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय बनाए रखने के साथ-साथ विभिन्न वैश्विक शक्ति केंद्रों के साथ तालमेल बनाने में मदद करती है। अमेरिका के साथ टैरिफ विवाद, रूस के साथ सामरिक-आर्थिक साझेदारी और चीन के साथ सीमा मुद्दों पर संवाद, भारत की कूटनीति को एक नई दिशा दे रहे हैं। जानें कैसे ये घटनाक्रम भारत की वैश्विक भूमिका को मजबूत कर रहे हैं।
 

भारत की कूटनीतिक गतिविधियों का समन्वय

भारत का वर्तमान कूटनीतिक कैलेंडर एक अद्वितीय समन्वय का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तीनों समानांतर मोर्चों पर सक्रिय हैं।


यह ट्रिपल इंजन रणनीति भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय बनाए रखने के साथ-साथ विभिन्न वैश्विक शक्ति केंद्रों के साथ तालमेल बनाने में सहायता करती है। मोदी का आगामी तियानजिन (चीन) दौरा, SCO शिखर सम्मेलन में भागीदारी और सीमा शांति पर जोर, जयशंकर का मॉस्को दौरा और रूस के साथ ऊर्जा व तकनीकी सहयोग पर वार्ता, तथा डोभाल की चीन और रूस में उच्च-स्तरीय सुरक्षा बातचीत, सभी एक ही लक्ष्य की ओर इशारा करते हैं- रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए बहु-संरेखण की नीति को मजबूत करना।


अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सक्रियता

अमेरिका के साथ टैरिफ विवाद और वैश्विक शक्ति संतुलन में हो रहे परिवर्तनों के बीच, यह सक्रियता भारत को न केवल दबाव झेलने की क्षमता प्रदान करती है, बल्कि इसे एक निर्णायक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने की दिशा में भी ले जाती है। भारत का यह व्यस्त कूटनीतिक कैलेंडर संकेत देता है कि आने वाले महीनों में क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण होने वाली है।


महत्वपूर्ण वार्ताएं और घटनाक्रम

भारत की कूटनीति इस समय तीन प्रमुख मोर्चों पर सक्रिय है— अमेरिका से टैरिफ विवाद, रूस के साथ सामरिक-आर्थिक साझेदारी, और चीन के साथ सीमा मुद्दों पर संवाद। विदेश मंत्री एस. जयशंकर अगले सप्ताह रूस की राजधानी मॉस्को में अपने समकक्ष सर्गेई लावरोव से वार्ता करेंगे, जबकि इससे पहले 18 अगस्त को चीन के विदेश मंत्री वांग यी नई दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ सीमा मुद्दे पर चर्चा करेंगे।


यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री मोदी की इस माह के अंत में तियानजिन (चीन) यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है, जहां वह शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।


भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव

पिछले सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के उत्पादों पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाकर कुल सीमा शुल्क 50% कर दिया, जिसका मुख्य कारण भारत का रूसी तेल का आयात बताया गया। भारत ने स्पष्ट किया है कि ऊर्जा खरीद राष्ट्रीय हित और बाजार की परिस्थितियों पर आधारित है, न कि किसी दबाव पर। यह कदम भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है, खासकर जब भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा पर विचार कर रहा है।


रूस के साथ उच्च-स्तरीय संवाद

इस बीच, भारत रूस के साथ उच्च-स्तरीय संवाद को तेज कर रहा है। NSA डोभाल हाल ही में मॉस्को जाकर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिले थे और अब जयशंकर वहां द्विपक्षीय मुद्दों, ऊर्जा सहयोग और पुतिन की आगामी भारत यात्रा की तैयारियों पर चर्चा करेंगे।


चीन के साथ संवाद

चीनी विदेश मंत्री वांग यी की नई दिल्ली यात्रा स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव संवाद के तहत हो रही है, जिसमें वांग और डोभाल सीमा मुद्दे पर वार्ता करेंगे। यह वार्ता गलवान घाटी की 2020 की हिंसक झड़प के बाद भारत-चीन संबंधों में आई कड़वाहट को कम करने के लिए कई संवाद तंत्रों को पुनर्जीवित करने का प्रयास है।


SCO शिखर सम्मेलन का महत्व

तियानजिन में होने वाला शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन केवल एक बहुपक्षीय कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह भारत-चीन संबंधों में आई ठंडक को कम करने और बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करने का अवसर भी है।


भारत-चीन संबंधों का भविष्य

भारत-चीन संबंधों ने पिछले दशक में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। इस यात्रा का असली संदेश प्रधानमंत्री मोदी के हालिया वक्तव्य में छिपा है, जिसे बीजिंग ने भी स्वीकार किया— “प्रतिस्पर्धा को संघर्ष में नहीं बदलना चाहिए।” यह दृष्टिकोण भारत की कूटनीति को बदलते वैश्विक समीकरणों में मजबूती देगा।


निष्कर्ष

भारत का मौजूदा कूटनीतिक कैलेंडर यह दर्शाता है कि वह एक साथ तीन महाशक्तियों के साथ अपने समीकरण साधने की कोशिश कर रहा है। मोदी की तियानजिन यात्रा इस संतुलन साधने की कला का हिस्सा है। यदि यह यात्रा ठोस समझौतों या भरोसा बहाली के कदमों में बदलती है, तो भारत-चीन संबंधों में नया अध्याय खुल सकता है।