भारत का फिलस्तीन समर्थन: एक संतुलित कूटनीति का परिचायक
भारत ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलस्तीन के समर्थन में मतदान किया, जो उसकी स्वतंत्र विदेश नीति और संतुलित कूटनीति को दर्शाता है। न्यूयॉर्क घोषणा का समर्थन करते हुए, भारत ने अपने ऐतिहासिक रुख को बनाए रखा है। यह कदम न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को मजबूत करता है, बल्कि घरेलू स्तर पर भी एक संतुलित संदेश देता है। भारत का यह निर्णय वैश्विक राजनीति में 'वैश्विक दक्षिण' की भूमिका को भी उजागर करता है।
Sep 20, 2025, 11:49 IST
संयुक्त राष्ट्र में भारत का मतदान
19 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुए मतदान ने भारत की विदेश नीति और सामरिक प्राथमिकताओं को एक बार फिर से स्पष्ट किया। इस मतदान में भारत ने फिलस्तीन के समर्थन में खड़ा होकर उस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, जिसमें फिलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को वीडियो संदेश के माध्यम से महासभा को संबोधित करने की अनुमति दी गई। अमेरिका द्वारा फिलस्तीन प्रतिनिधियों को वीज़ा से वंचित करने की पृष्ठभूमि में यह कदम और भी महत्वपूर्ण हो गया था।
न्यूयॉर्क घोषणा का समर्थन
हाल ही में, भारत ने न्यूयॉर्क घोषणा प्रस्ताव का समर्थन किया, जो फिलस्तीन के अधिकारों और दो-राष्ट्र समाधान की दिशा में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दोहराता है। इन दोनों घटनाओं को मिलाकर देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि भारत फिलस्तीन के मुद्दे पर अपनी ऐतिहासिक नीति को न केवल बनाए रखे हुए है, बल्कि उसे वैश्विक संदर्भों में प्रासंगिक बना रहा है।
भारत की ऐतिहासिक नीति
1988 में, भारत उन पहले देशों में से था जिसने फिलस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी थी। तब से, नई दिल्ली ने लगातार दो-राष्ट्र समाधान की वकालत की है। हालांकि, पिछले दो दशकों में भारत और इज़राइल के बीच रक्षा, कृषि, साइबर सुरक्षा और नवाचार जैसे क्षेत्रों में गहरे सहयोग ने यह प्रश्न उठाया कि क्या भारत फिलस्तीन पर अपने पुराने रुख से पीछे हट रहा है। लेकिन हालिया मतदान और न्यूयॉर्क घोषणा में भारत के समर्थन ने यह सिद्ध कर दिया कि नई दिल्ली संतुलित नीति अपनाते हुए दोनों पक्षों के साथ अपने संबंध बनाए रखना चाहती है।
कूटनीतिक संकेत और सामरिक निहितार्थ
भारत का यह निर्णय केवल कूटनीतिक संकेत नहीं है, बल्कि इसमें कई सामरिक निहितार्थ भी हैं। जब अमेरिका फिलस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता देने से इंकार कर रहा है, तब भारत का यह वोट दर्शाता है कि वह किसी भी दबाव से परे रहकर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति चलाना चाहता है। इसके अलावा, कई देशों ने फिलस्तीन प्रस्ताव का समर्थन किया, और भारत का साथ जुड़ने से यह संदेश गया कि विश्व राजनीति में "वैश्विक दक्षिण" अपनी स्वतंत्र और न्यायोन्मुख भूमिका निभा रहा है।
भारत-इज़राइल संबंधों पर प्रभाव
यह स्वाभाविक है कि भारत का यह कदम इज़राइल के साथ संबंधों को कैसे प्रभावित करेगा। इज़राइल और भारत के बीच आज रक्षा खरीद, खुफिया साझेदारी और कृषि नवाचार जैसे क्षेत्रों में अभूतपूर्व सहयोग है। हालांकि इज़राइल भारत के हालिया रुख से असहज हो सकता है, लेकिन द्विपक्षीय रिश्ते इतनी गहराई तक पहुँच चुके हैं कि किसी एक संयुक्त राष्ट्र मतदान से उन पर गहरा असर पड़ने की संभावना कम है।
भारत का रणनीतिक लाभ
भारत का यह रुख उसके लिए रणनीतिक रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है। एक बड़ा मुस्लिम समुदाय फिलस्तीन के सवाल से भावनात्मक रूप से जुड़ा है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर फिलस्तीन का समर्थन करना घरेलू स्तर पर भी एक संतुलित संदेश देता है। इसके अलावा, भारत खुद को "विश्व गुरु" और न्यायोन्मुख शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है। फिलस्तीन के समर्थन में खड़ा होना इस छवि को मजबूती देता है।
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति
संयुक्त राष्ट्र में फिलस्तीन के समर्थन में भारत का हालिया वोट और न्यूयॉर्क घोषणा में दिया गया समर्थन यह दर्शाता है कि नई दिल्ली किसी भी दबाव में झुकने वाली शक्ति नहीं है। यह निर्णय भारत की स्वतंत्र विदेश नीति, न्यायोन्मुख दृष्टिकोण और वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनने की आकांक्षा का प्रमाण है।
भविष्य की संभावनाएँ
भारत का संतुलित और सिद्धांत-आधारित रुख आने वाले वर्षों में न केवल उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को और मज़बूत करेगा, बल्कि उसे मध्य-पूर्व की जटिल राजनीति में एक निर्णायक और विश्वसनीय शक्ति के रूप में भी स्थापित करेगा।