भारत और रूस के बीच कच्चे तेल की बढ़ती खरीदारी: अमेरिका का दबाव बेअसर
भारत और रूस के बीच कच्चे तेल का नया सौदा
रूस के यूराल क्रूड पर $2 से $2.50 प्रति बैरल की छूट
अंतरराष्ट्रीय व्यापार और राजनीति में दोस्ती और रियायतें अक्सर समीकरणों को बदल देती हैं। भारत, रूस और अमेरिका के बीच कच्चे तेल की खरीद को लेकर चल रही खींचतान में यही देखने को मिल रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को रूस से तेल खरीदने पर सख्ती दिखाई है, लेकिन रूस ने भारत को आकर्षक छूट देकर दबाव को बेअसर कर दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब अमेरिका की आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए रूस से अधिक तेल खरीद सकता है।
अमेरिका का दबाव
अगस्त में, अमेरिकी प्रशासन ने भारत पर रूस से तेल आयात पर 25% का अतिरिक्त टैरिफ लगाया। अमेरिका का उद्देश्य भारत को रूस से दूर करना था, लेकिन इसका उल्टा असर देखने को मिल रहा है। भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का परिचय देते हुए अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता दी है।
रूस की छूट
इस बीच, रूस ने भारत के लिए अपने यूराल क्रूड पर छूट को बढ़ा दिया है। सूत्रों के अनुसार, नवंबर के लिए रूस ने प्रति बैरल $2 से $2.50 की छूट की पेशकश की है, जो अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम कर देती है।
दिलचस्प है कि जुलाई-अगस्त में यह छूट घटकर $1 प्रति बैरल रह गई थी, लेकिन अब रूस ने फिर से भारत के लिए दरवाजे खोले हैं, जिससे भारतीय रिफाइनरियों के लिए यह सौदा फायदेमंद हो गया है।
भारत का स्पष्ट रुख
भारत ने इस मामले में स्पष्ट रुख अपनाया है। सरकार का कहना है कि तेल की खरीद का निर्णय पूरी तरह से कीमतों और आर्थिक हितों पर आधारित है। भारत एक बड़ा तेल आयातक है और वह किसी भी देश से सस्ता तेल खरीदेगा जो उसकी शर्तों पर उपलब्ध हो। अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता की धीमी गति भी एक कारण है कि भारत रूस जैसे विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता से मुंह नहीं मोड़ना चाहता।
आंकड़े भी यही दर्शाते हैं। रूस भारत का एक प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता है। हालांकि, अप्रैल में भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 40% थी, जो सितंबर में घटकर 33.9% रह गई थी। लेकिन अब छूट बढ़ने के बाद इसमें फिर से वृद्धि देखने को मिल सकती है। केप्लर के अनुसार, अक्टूबर में रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़कर लगभग 1.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुंच सकता है, जो सितंबर की तुलना में लगभग 6% अधिक है।
भारत की विविधता
हालांकि, भारत केवल रूस पर निर्भर नहीं है। भारतीय सरकारी तेल कंपनियां भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा को लेकर सतर्क हैं। इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी कंपनियां मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों के साथ दीर्घकालिक तेल आपूर्ति सौदों पर बातचीत कर रही हैं। इन नए सौदों में लचीलापन रखा जा रहा है, जिससे भविष्य में यदि रूसी तेल अधिक फायदेमंद हो, तो भारतीय खरीदारों को यह अधिकार होगा कि वे इन सौदों के तहत आने वाले कार्गो को किसी और को बेच सकें या अपने हिसाब से ऑप्टिमाइज कर सकें।