भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा क्षेत्र में नया एलपीजी करार: एक ऐतिहासिक कदम
भारत-अमेरिका के बीच ऊर्जा सहयोग का नया अध्याय
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताओं में सकारात्मक प्रगति के संकेतों के साथ, दोनों देशों ने ऊर्जा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण करार किया है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने अमेरिका से तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) के लिए एक वर्ष का दीर्घकालिक करार किया है। इसे भारत के एलपीजी बाजार के लिए एक "ऐतिहासिक पहल" माना गया है। इस करार के तहत इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम मिलकर अमेरिका के गल्फ कोस्ट से लगभग 2.2 मिलियन टन प्रतिवर्ष (MTPA) एलपीजी का आयात करेंगी, जो भारत के वार्षिक एलपीजी आयात का लगभग 10 प्रतिशत है।
सरकारी तेल कंपनियों की पहल
मंत्री ने बताया कि सरकारी तेल कंपनियों की टीमों ने हाल के महीनों में अमेरिका जाकर प्रमुख उत्पादकों के साथ बातचीत की थी। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को सस्ता एलपीजी उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। पिछले वर्ष वैश्विक कीमतों में 60% वृद्धि के बावजूद, उपभोक्ता कीमतों को 500–550 रुपये प्रति सिलेंडर तक रखने के लिए मोदी सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये से अधिक का बोझ उठाया।
एलपीजी आयात समझौते का सामरिक महत्व
अमेरिका से दीर्घकालिक एलपीजी आयात समझौता केवल एक वाणिज्यिक सौदा नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत, जो विश्व के सबसे तेजी से बढ़ते एलपीजी उपभोक्ता देशों में से एक है, के लिए घरेलू जरूरतों को पूरा करना और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना आवश्यक है। इस करार का समय अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर जब वैश्विक कीमतें अनिश्चितता का सामना कर रही हैं।
भारत की ऊर्जा रणनीति में बदलाव
भारत और अमेरिका के बीच इस करार का सामरिक महत्व भी है। विश्व राजनीति में ऊर्जा क्षेत्र आर्थिक हितों और भू-राजनीतिक समीकरणों से गहराई से जुड़ा हुआ है। अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक ऊर्जा संरचना को प्रभावित किया है। ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर लगाए गए शुल्क और प्रस्तावित "रूस प्रतिबंध अधिनियम 2025" से भारतीय तेल कंपनियों पर गहरा असर पड़ सकता है।
भारत की ऊर्जा कूटनीति का नया दृष्टिकोण
इस करार के माध्यम से भारत अपनी ऊर्जा रणनीति में तीन प्रमुख संकेत देता है: पहली, भारत किसी एक क्षेत्र पर निर्भरता को सीमित करने के लिए प्रतिबद्ध है; दूसरी, अमेरिका के साथ ऊर्जा सहयोग के नए अवसरों को खोल रहा है; और तीसरी, यह भारत की "रणनीतिक स्वायत्तता" को मजबूत करता है।
भविष्य की चुनौतियाँ और अवसर
हालांकि, ऊर्जा क्षेत्र में संतुलन बनाना कठिन होता जा रहा है। अमेरिका का बढ़ता प्रतिबंधात्मक रुख और रूस से सस्ती ऊर्जा का आकर्षण भारत की ऊर्जा कूटनीति को जटिल बना रहे हैं। लेकिन भारत की आर्थिक जरूरतें और विकास के लक्ष्य यह मांग करते हैं कि ऊर्जा सुरक्षा को बहु-स्रोत और लचीली रणनीति के तहत आगे बढ़ाया जाए।
निष्कर्ष
अमेरिका से एलपीजी आयात का यह नया करार भारत की दीर्घकालिक वैश्विक रणनीति का हिस्सा है। यह कदम भारत की सामरिक स्वायत्तता, ऊर्जा लचीलापन और आर्थिक स्थिरता को मजबूत करेगा।