भारत-अमेरिका के सैन्य सहयोग का नया अध्याय: युद्ध अभ्यास की महत्वपूर्ण भूमिका
भारत और अमेरिका के बीच चल रहे युद्ध अभ्यास का 21वां संस्करण अलास्का में हो रहा है, जो दोनों देशों के सामरिक संबंधों की गहराई को दर्शाता है। इस अभ्यास में भारतीय और अमेरिकी सैनिक विभिन्न सामरिक तकनीकों का पूर्वाभ्यास कर रहे हैं। हालांकि, व्यापारिक मतभेदों के बावजूद, यह सहयोग दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी को मजबूत करने का संकेत है। जानें इस अभ्यास के प्रमुख पहलुओं और भविष्य की संभावनाओं के बारे में।
Sep 3, 2025, 16:52 IST
भारत और अमेरिका के बीच सामरिक संबंधों की गहराई
भारत और अमेरिका के सामरिक संबंधों की जटिलता को समझने के लिए संयुक्त सैन्य अभ्यास, जैसे कि "युद्ध अभ्यास", एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। वर्तमान में अलास्का में चल रहा 21वां संस्करण केवल एक औपचारिक सैन्य प्रशिक्षण नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि वैश्विक राजनीतिक परिवर्तनों और आर्थिक तनावों के बावजूद, दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग की गति में कोई कमी नहीं आई है।
व्यापारिक मतभेदों के बावजूद सहयोग
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार, शुल्क और ऊर्जा आयात को लेकर कुछ मतभेद उत्पन्न हुए हैं। भारत का रूस से तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद अमेरिका के लिए चिंता का विषय है। इसके बावजूद, भारत अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर अग्रसर है। फिर भी, "युद्ध अभ्यास" यह दर्शाता है कि सामरिक हितों और सुरक्षा साझेदारी के मामले में, दोनों देश अपने मतभेदों को दरकिनार कर देते हैं।
युद्ध अभ्यास का विवरण
भारतीय और अमेरिकी सैनिक इस समय अलास्का के फोर्ट वेनराइट में एकत्रित हैं, जहाँ वे "युद्ध अभ्यास" नामक दो सप्ताह के सैन्य अभ्यास में भाग ले रहे हैं। यह अभ्यास 1 से 14 सितंबर तक चलेगा, जिसमें भारतीय दल, जिसमें मद्रास रेजीमेंट की एक बटालियन शामिल है, अमेरिकी सेना की 1st बटालियन, 5th इन्फैंट्री रेजीमेंट के साथ संयुक्त प्रशिक्षण करेगा।
सामरिक अभ्यासों की विविधता
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस दौरान सैनिक विभिन्न सामरिक अभ्यासों का पूर्वाभ्यास करेंगे, जिनमें हेलिबोर्न ऑपरेशन, निगरानी संसाधनों का उपयोग, पर्वतीय युद्ध, घायलों की निकासी, और युद्धक्षेत्र में चिकित्सा सहायता शामिल हैं। दोनों सेनाओं के विशेषज्ञ संयुक्त कार्यशालाएँ भी आयोजित करेंगे, जिनमें UAS और काउंटर-UAS ऑपरेशन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होगी।
अभ्यास का उद्देश्य
यह अभ्यास संयुक्त रूप से योजना बनाकर और क्रियान्वित किए गए सामरिक अभियानों के साथ संपन्न होगा, जिसमें लाइव-फायर ड्रिल और ऊँचाई वाले क्षेत्रों में युद्ध परिदृश्य शामिल हैं। इसका मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की क्षमता को बढ़ाना और बहु-क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना है।
अमेरिकी नौसेना की गतिविधियाँ
यह अभ्यास उस समय हो रहा है जब अमेरिकी नौसेना की पनडुब्बी सहयोग पोत यूएसएस फ्रैंक केबल ने हाल ही में चेन्नई का दौरा किया। यह जहाज इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तैनात पनडुब्बियों और सतही पोतों को मरम्मत और रसद सहयोग प्रदान करता है।
भविष्य की संभावनाएँ
पिछले वर्ष भारत और अमेरिका ने कई सैन्य समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे रक्षा और सुरक्षा सहयोग को नई मजबूती मिली। द्विपक्षीय रक्षा सहयोग की रूपरेखा 2013 में संयुक्त भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग घोषणा पत्र में तय की गई थी। इसके तहत दोनों देशों ने सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई थी।
भारत के रक्षा सौदे
भारत ने अमेरिका से कई महत्वपूर्ण रक्षा सौदे किए हैं, जिनमें MH-60R सीहॉक हेलिकॉप्टर और M777 अल्ट्रा-लाइट होवित्ज़र शामिल हैं। वर्तमान में GE F-414 जेट इंजन के निर्माण को लेकर वार्ताएँ चल रही हैं।
युद्ध अभ्यास के प्रमुख विषय
इस बार के युद्ध अभ्यास में हेलिबोर्न ऑपरेशन, पर्वतीय युद्ध, ड्रोन तकनीक, और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। यह सभी आधुनिक युद्धकला के बदलते स्वरूप को दर्शाते हैं।
साझेदारी के प्रश्न
हालांकि, इस साझेदारी के बीच कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं। क्या अमेरिका भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का सम्मान करेगा? क्या भारत, रूस और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित रख पाएगा? और क्या यह सैन्य सहयोग केवल हथियारों की खरीद तक सीमित रहेगा?
निष्कर्ष
स्पष्ट है कि "युद्ध अभ्यास" केवल एक सैन्य कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है— अंतरराष्ट्रीय तनावों और द्विपक्षीय मतभेदों के बावजूद, भारत और अमेरिका को यह समझ में आता है कि भविष्य की सुरक्षा चुनौतियाँ साझेदारी और विश्वास की मांग करती हैं।