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भगवान शिव की तीसरी आँख: विनाश और सृजन का रहस्य

भगवान शिव की तीसरी आँख का रहस्य और महत्व जानें। यह आँख विनाश और सृजन का प्रतीक है, जो अधर्म और अहंकार के खिलाफ खुलती है। जानिए इसकी उत्पत्ति की पौराणिक कथा और इसका ज्ञान, विवेक और पुनर्निर्माण से क्या संबंध है।
 

भगवान शिव की तीसरी आँख का महत्व


भगवान शिव की तीसरी आँख का उल्लेख अनेक पौराणिक कथाओं में मिलता है, जो विनाश और सृजन का प्रतीक है। यह आँख तब खुलती है जब अधर्म, अहंकार या अत्याचार अपने चरम पर पहुँच जाते हैं, और यह उन तत्वों का नाश कर देती है।


एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब माता पार्वती ने भगवान शिव की आँखें बंद कीं, तब उनके ललाट पर तीसरी आँख प्रकट हुई, जिससे पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश फैल गया।


भगवान शिव की तीसरी आँख केवल बाहरी बाधाओं को ही नहीं, बल्कि आंतरिक अशुद्धियों जैसे वासना और मोह को भी समाप्त करती है।


तीसरे नेत्र की उत्पत्ति की कथा

भगवान शिव की तीसरी आँख का एक प्रसिद्ध किस्सा यह है कि जब कामदेव ने उन्हें प्रेम-बाण से प्रभावित करने का प्रयास किया, तो शिवजी ने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आँख खोली, जिससे कामदेव भस्म हो गए। यह घटना उनके तीसरे नेत्र की विनाशकारी शक्ति को दर्शाती है।


भगवान शिव का यह तीसरा नेत्र नाश और सृजन दोनों का द्वार है। यह तब खुलता है जब कोई कार्य धर्म के खिलाफ होता है। इसके अलावा, यह चेतना, अंतर्दृष्टि और मानसिक स्पष्टता का प्रतीक भी है। इसलिए, यह अज्ञानता को समाप्त करता है, अधर्म को नष्ट करता है और सच्चे ज्ञान का प्रकाश फैलाता है।


एक अन्य कथा में, माता पार्वती ने भगवान शिव की आँखें बंद कर दीं, जिससे पूरा ब्रह्मांड अंधकार में डूब गया। इस स्थिति से त्रस्त होकर भगवान शिव ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से तीसरी आँख प्रकट की, जो अंधकार को दूर कर ब्रह्मांड को पुनः प्रकाश देती है।


विनाश और पुनर्निर्माण का चक्र

भगवान शिव की तीसरी आँख ज्ञान, विवेक और विनाश का प्रतीक मानी जाती है। यह भौतिक दुनिया की सीमाओं से परे सत्य और असत्य को देखने में सक्षम है। जब अधर्म और अत्याचार अपने चरम पर होते हैं, तब यह आँख खुलती है और उन तत्वों का नाश कर देती है जो सृष्टि के संतुलन में बाधा डालते हैं।


भगवान शिव की तीसरी आँख केवल बाहरी चीजों को ही नहीं, बल्कि आंतरिक विकारों जैसे वासना और मोह को भी समाप्त करती है। यह विनाश आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना मनुष्य अपनी तीसरी आँख से परिचित नहीं हो पाएगा और न ही अपनी चेतना का स्तर ऊँचा उठा सकेगा।


शिवजी का विनाश केवल नाश नहीं है, बल्कि यह पुनर्निर्माण का पहला चरण है। जब तक कुछ समाप्त नहीं होगा, तब तक कुछ नया कैसे बनेगा। इसलिए, उनका विनाश नए सत्य की स्थापना का आरंभ है।