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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन: अमेरिका को चुनौती देने की तैयारी

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारत, चीन और रूस जैसे देशों ने भाग लिया, जबकि अमेरिका की चिंताएं बढ़ी हैं। इस सम्मेलन में डॉलर की गिरावट और ब्रिक्स देशों के बीच आपसी व्यापार को बढ़ावा देने की योजनाओं पर चर्चा की गई। क्या यह संगठन पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती देगा? जानें इस महत्वपूर्ण बैठक के बारे में।
 

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन

ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में 6 और 7 जुलाई को ब्रिक्स देशों की बैठक आयोजित की गई, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया। इस सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शामिल नहीं हुए।


ब्रिक्स का महत्व

ब्रिक्स, जो कि 10 विकासशील देशों का एक समूह है, में भारत, चीन, ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। 2024 में ईरान, मिस्र, इथियोपिया, यूएई और इंडोनेशिया भी इसके सदस्य बनेंगे। इस संगठन में कोई पश्चिमी देश नहीं है, लेकिन इसकी गतिविधियों पर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की नजर बनी हुई है। यह संगठन पश्चिमी देशों के प्रभुत्व के खिलाफ एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, जिससे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चिंतित हैं।


ब्रिक्स और अमेरिकी डॉलर

दुनिया के लगभग 50 प्रतिशत व्यापार में अमेरिकी डॉलर का उपयोग होता है, जिससे यह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बन गई है। ब्रिक्स देशों का लक्ष्य है कि वे आपसी व्यापार में अपनी स्थानीय मुद्राओं का उपयोग करें, जब तक कि वे एक साझा मुद्रा नहीं बना लेते। चीन और रूस ने पहले ही कई व्यापारिक समझौतों में अपनी मुद्रा का उपयोग किया है।


चीन की भूमिका

ब्रिक्स में चीन अमेरिका को चुनौती देने की दिशा में अग्रसर है। चीन इस समूह की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है और वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व करने का सपना देख रहा है। हालांकि, भारत के विरोध के कारण चीन की मुद्रा युआन में व्यापार करने की योजना अभी तक सफल नहीं हो पाई है।


ब्रिक्स की जनसंख्या

ब्रिक्स देशों की जनसंख्या विश्व की 56 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करती है, जिससे इसके विकास की संभावनाएं बढ़ती हैं। इसके अलावा, ये देश वैश्विक अर्थव्यवस्था का 40 प्रतिशत हिस्सा भी रखते हैं, जिससे यह पश्चिमी देशों के संगठनों का एक मजबूत विकल्प बनता है।


डॉलर में गिरावट

ब्रिक्स देशों की बैठक से पहले अमेरिकी डॉलर में इस वर्ष 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। यह गिरावट 1973 के बाद से किसी भी वर्ष के पहले छह महीनों में सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है।