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बैकुंठ चतुर्दशी: पूजा और व्रत कथा का महत्व

बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा की जाती है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जानें इस पर्व की व्रत कथा और इसके पीछे की पौराणिक मान्यताएँ।
 

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

बैकुंठ चतुर्दशी कथा

बैकुंठ चतुर्दशी 2025: हिंदू धर्म में बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक साथ पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु से बैकुंठ धाम जाने का मार्ग प्राप्त किया था, जिसके कारण इसे “बैकुंठ चतुर्दशी” कहा जाता है।

इस वर्ष, बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मंगलवार, 4 नवंबर को मनाया जाएगा। इस अवसर पर व्रत कथा का पाठ करना अनिवार्य माना जाता है, और इसे पढ़ने या सुनने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। आइए, अब हम बैकुंठ चतुर्दशी की कथा पढ़ते हैं।

बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने कार्तिक मास की चतुर्दशी को भगवान शिव की पूजा के लिए वाराणसी में एक हजार स्वर्ण कमल के फूल अर्पित करने का संकल्प लिया।

इस पूजा के दौरान, भगवान शिव ने विष्णु जी की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक फूल छिपा दिया। जब भगवान विष्णु ने देखा कि एक फूल कम है, तो उन्होंने सोचा कि उनकी आंखें भी कमल के समान हैं, क्योंकि उन्हें ‘कमल नयन’ कहा जाता है।

इसलिए, भगवान विष्णु ने फूल के स्थान पर अपनी आंखें भगवान शिव को अर्पित करने का निर्णय लिया। जैसे ही उन्होंने अपनी आंखें निकालने का प्रयास किया, भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें रोक दिया। भगवान शिव भगवान विष्णु की भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया। शिव जी ने यह वरदान दिया कि जो भी इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करेगा, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी।

(यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है।)