बेलडांगा में बाबरी मस्जिद-शैली की मस्जिद का शिलान्यास, सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद
मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में निलंबित टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर ने बाबरी मस्जिद-शैली की मस्जिद का शिलान्यास किया। इस कार्यक्रम के लिए अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए गए थे, जिसमें 3,000 पुलिसकर्मियों और स्वयंसेवकों की तैनाती शामिल थी। कबीर ने इस अवसर पर कहा कि मस्जिद के साथ-साथ अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान भी बनाए जाएंगे। हालांकि, यह कार्यक्रम केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है, जो सांप्रदायिक विभाजन की कोशिशों को उजागर करता है। क्या यह भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज के लिए खतरनाक है? जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा गया।
Dec 6, 2025, 19:52 IST
बेलडांगा में मस्जिद का शिलान्यास
मुर्शिदाबाद ज़िले के बेलडांगा में आज निलंबित टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर ने बाबरी मस्जिद-शैली की मस्जिद का शिलान्यास किया। इस कार्यक्रम के लिए जिले में व्यापक सुरक्षा इंतजाम किए गए थे, क्योंकि भारी भीड़ की संभावना थी। प्रशासन का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय राजमार्ग-12 पर यातायात को सुचारु बनाए रखना था।
विशाल भीड़ और सुरक्षा इंतजाम
आयोजकों के अनुसार, दो क़ाज़ी विशेष काफ़िले के साथ सऊदी अरब से आए थे और संभावित 3 लाख लोगों की भीड़ को देखते हुए 3,000 से अधिक स्वयंसेवकों और लगभग 3,000 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी। कार्यक्रम के लिए मंच, भोजन, लॉजिस्टिक और सुरक्षा पर कुल खर्च 60 से 70 लाख रुपये तक आया है।
राजनीतिक संदेश का प्रदर्शन
हुमायूं कबीर, जिन्हें हाल ही में पार्टी के लिए विवादों में रहने के कारण टीएमसी से निलंबित किया गया था, इस कार्यक्रम के माध्यम से अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करते नजर आए। उन्होंने कहा कि बेलडांगा में केवल मस्जिद ही नहीं, बल्कि अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान और सभी समुदायों के लिए गेस्ट हाउस भी बनाए जाएंगे।
सांप्रदायिकता का खतरा
मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद-शैली की मस्जिद का शिलान्यास केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं है; यह एक राजनीतिक संदेश भी है। हुमायूं कबीर की भीड़, बाहरी धार्मिक नेताओं की उपस्थिति और विवादास्पद भाषा का उपयोग करना स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक विभाजन की कोशिश है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में यह अत्यंत खतरनाक है।
इतिहास और संवेदनशीलता
जब किसी मस्जिद को बाबरी मस्जिद-शैली या बाबर के नाम पर स्थापित करने की बात होती है, तो यह केवल स्थापत्य शैली का मामला नहीं रह जाता। यह इतिहास के उन पन्नों को कुरेदने का प्रयास बन जाता है जो आज भी समाज में संवेदनशीलता रखते हैं। क्या यह हिंदुओं को यह संदेश नहीं देता कि हम उस ऐतिहासिक पीड़ा के प्रतीक का महिमामंडन करेंगे?
अयोध्या में मस्जिद निर्माण की स्थिति
अयोध्या में नई मस्जिद परियोजना, जहाँ कानूनन तय स्थान पर निर्माण होना है, वह वर्षों से धीमी गति और न्यूनतम दानराशि के चलते संघर्ष कर रही है। इंडो-इस्लामिक कल्चरल फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष ज़फ़र फ़ारूकी ने स्वीकार किया है कि अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए अनुमानित 65 करोड़ रुपये की तुलना में अभी तक केवल तीन करोड़ रुपये ही जुटाए गए हैं। यदि हुमायूं कबीर को मस्जिद की इतनी चिंता है, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बनवाई जा रही मस्जिद के लिए आगे आना चाहिए था।
नए भविष्य की दिशा
भारत में किसी भी समुदाय का गर्व इतिहास के संघर्षों को दोहराने में नहीं, बल्कि नए भविष्य का निर्माण करने में है। अगर मंदिर या मस्जिद का नाम, आकार, भाषा या आयोजन समाज को विभाजित करता है, तो हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। धर्म का सम्मान करें, इतिहास से सीखें, पर राजनीतिक लाभ के लिए भावनाओं की आग पर घी न डालें। यही आज का सबसे महत्वपूर्ण संदेश है।