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बेंगलुरु में महिला ने डिजिटल धोखाधड़ी में खोए 32 करोड़ रुपये

बेंगलुरु की एक 57 वर्षीय महिला ने एक डिजिटल अरेस्ट घोटाले में लगभग 32 करोड़ रुपये खो दिए। धोखेबाजों ने सीबीआई अधिकारी बनकर उसे ठगा और उसकी वित्तीय जानकारी हासिल की। महिला ने छह महीने तक इस धोखे का सामना किया, जिसके दौरान उसने कई बड़ी रकम ट्रांसफर की। अंततः उसे एक क्लियरेंस लेटर मिला, लेकिन तब तक उसकी स्वास्थ्य स्थिति गंभीर हो गई थी। जानें इस मामले की पूरी कहानी और इसके पीछे की सच्चाई।
 

महिला का डिजिटल अरेस्ट घोटाला

बेंगलुरु की 57 वर्षीय एक महिला ने एक कथित डिजिटल अरेस्ट घोटाले में लगभग 32 करोड़ रुपये का नुकसान उठाया है। इस मामले में पुलिस ने शिकायत दर्ज कर ली है और जांच जारी है।


धोखेबाजों ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारी बनकर महिला पर स्काइप के माध्यम से लगातार नजर रखी और उसे डिजिटल अरेस्ट की स्थिति में रखा। उन्होंने उसकी दहशत का फायदा उठाकर उसकी वित्तीय जानकारी प्राप्त की और 187 बैंक ट्रांजेक्शन करने के लिए दबाव डाला।


धोखाधड़ी की शुरुआत

महिला, जो इंदिरानगर में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, ने अपनी शिकायत में बताया कि धोखेबाजों ने उसे छह महीने से अधिक समय तक डिजिटल अरेस्ट के झांसे में रखा। यह सब 15 सितंबर, 2024 को एक फोन कॉल से शुरू हुआ, जिसमें एक व्यक्ति ने डीएचएल अंधेरी से होने का दावा किया और कहा कि उसके नाम पर बुक किए गए पार्सल में क्रेडिट कार्ड, पासपोर्ट और मादक पदार्थ एमडीएमए है।


सीबीआई अधिकारी का झांसा

महिला को धमकाया गया और कहा गया कि उसके खिलाफ सबूत हैं। उसे दो स्काइप आईडी बनाने और वीडियो कॉल पर बने रहने के लिए कहा गया। मोहित हांडा नामक व्यक्ति ने दो दिन तक उसकी निगरानी की, उसके बाद राहुल यादव ने एक हफ्ते तक उसे ट्रैक किया। एक अन्य जालसाज, प्रदीप सिंह, ने खुद को सीबीआई का वरिष्ठ अधिकारी बताकर उस पर अपनी बेगुनाही साबित करने का दबाव डाला।


वित्तीय विवरण साझा करना

महिला ने 24 सितंबर से 22 अक्टूबर के बीच अपने वित्तीय विवरण साझा किए और बड़ी रकम ट्रांसफर की। उसने 24 अक्टूबर और 3 नवंबर के बीच दो करोड़ रुपये की कथित जमानत राशि भी जमा की, जिसके बाद कर के लिए और भुगतान किया गया।


तनाव और स्वास्थ्य समस्याएं

पीड़िता को एक दिसंबर को 'क्लियरेंस लेटर' मिला, लेकिन इतने लंबे समय तक तनाव में रहने के कारण वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई, जिससे ठीक होने में एक महीने का समय लगा।


दिसंबर के बाद, धोखेबाजों ने प्रोसेसिंग शुल्क की मांग की और रिफंड को फरवरी और फिर मार्च तक टालते रहे। 26 मार्च, 2025 को सभी प्रकार का संवाद बंद हो गया। पीड़िता ने कहा कि 187 लेनदेन के माध्यम से उससे लगभग 31.83 करोड़ रुपये की राशि वसूली गई।