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बीमा पॉलिसी में छिपी जानकारी से परिवार को हुआ बड़ा नुकसान

हरियाणा के महिपाल सिंह का बीमा मामला एक चेतावनी है उन सभी के लिए जो बीमा पॉलिसी लेते समय महत्वपूर्ण जानकारी छिपाते हैं। उनकी पत्नी को LIC से क्लेम नहीं मिला, जिससे यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जानें इस मामले की पूरी कहानी और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, जिसने LIC के पक्ष में फैसला सुनाया। यह घटना बीमाधारकों के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है कि पारदर्शिता बनाए रखना कितना आवश्यक है।
 

बीमा पॉलिसी में छिपी जानकारी का संकट

जब आप बीमा पॉलिसी लेते हैं, तो यदि आपने जानबूझकर कोई महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई है, तो यह आपके या आपके परिवार के लिए गंभीर समस्या बन सकती है। हरियाणा से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें एक बीमा धारक की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को जीवन बीमा निगम (LIC) से कोई क्लेम नहीं मिला। यह मामला उपभोक्ता अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन अंततः कोर्ट ने LIC के निर्णय को सही ठहराया।


मामले का विवरण

हरियाणा के झज्जर के निवासी महिपाल सिंह ने 28 मार्च 2013 को LIC का जीवन आरोग्य हेल्थ प्लान लिया। आवेदन के समय उन्होंने खुद को पूरी तरह नशामुक्त बताया और कहा कि वह शराब, धूम्रपान या तंबाकू से दूर हैं।


हालांकि, पॉलिसी लेने के एक साल के भीतर ही महिपाल की तबीयत बिगड़ गई और 1 जून 2014 को उनका निधन हो गया। उन्हें पेट में तेज दर्द और उल्टियों के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लंबे इलाज के बाद उनकी मृत्यु कार्डियक अरेस्ट से हुई।


LIC का क्लेम रिजेक्शन

महिपाल की पत्नी सुनीता सिंह ने इलाज और अन्य खर्चों की भरपाई के लिए बीमा क्लेम दायर किया, लेकिन LIC ने इसे खारिज कर दिया। उनका कहना था कि महिपाल को शराब की गंभीर लत थी, जिसे उन्होंने पॉलिसी लेते समय छिपाया था। मेडिकल रिपोर्ट्स में यह सामने आया कि महिपाल लंबे समय से अत्यधिक शराब का सेवन कर रहे थे, जिससे उनके लीवर और किडनी को गंभीर नुकसान हुआ।


कानूनी लड़ाई का परिणाम

सुनीता ने जिला उपभोक्ता फोरम में अपील की, जहां अदालत ने LIC को ₹5,21,650 का क्लेम देने का आदेश दिया। हालांकि, LIC ने इस फैसले को चुनौती दी, लेकिन राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने जिला अदालत के निर्णय को बरकरार रखा।


LIC ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां मार्च 2025 में कोर्ट ने LIC के पक्ष में निर्णय सुनाया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता ने कहा कि छिपाई गई जानकारी ही मृत्यु का कारण बनी।


बीमाधारकों के लिए चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पॉलिसी लेते समय किसी बीमारी या लत को छिपाया गया और वही मृत्यु का कारण बनी, तो बीमा कंपनी को क्लेम देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह मामला उन लाखों लोगों के लिए एक चेतावनी है जो बीमा पॉलिसी लेते समय छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करते हैं। बीमा एक भरोसे का अनुबंध है, जिसमें पारदर्शिता आवश्यक है।