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बीएचयू में कर्मचारी की गुमशुदगी के बाद पेंशन का मामला

बीएचयू में एक अनोखा मामला सामने आया है, जहां एक जीवित कर्मचारी के परिवार को पांच साल से अधिक समय तक पेंशन का भुगतान किया गया। रमाशंकर राम, जो 2013 में लापता हो गए थे, हाल ही में लौट आए हैं। इस प्रकरण ने प्रशासन को पारिवारिक पेंशन को रोकने के आदेश देने पर मजबूर कर दिया है। जानें इस मामले की पूरी कहानी और इसके पीछे के नियम।
 

वाराणसी में अजीबोगरीब पेंशन प्रकरण

वाराणसी
बीएचयू में एक जीवित कर्मचारी के परिवार को पांच साल से अधिक समय तक पेंशन का भुगतान किया गया है। यह मामला तब उजागर हुआ जब कर्मचारी रमाशंकर राम ने कुलसचिव कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद प्रशासन ने पारिवारिक पेंशन को तुरंत रोकने के आदेश जारी किए हैं।


रमाशंकर राम, जो एबी हॉस्टल कमच्छा में वरिष्ठ सहायक के रूप में कार्यरत थे, पहले सामान्य प्रशासन में टाइपिस्ट और वित्त विभाग में कैशबुक का काम कर चुके थे। 2013 में अचानक वह लापता हो गए, जिसके बाद उनके परिवार ने 19 मई 2013 को लंका थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। सात साल के इंतजार के बाद बीएचयू ने पारिवारिक पेंशन शुरू की। हाल ही में, नवंबर 2025 में, रमाशंकर राम अचानक लौट आए।


उन्होंने बताया कि 2007 के बाद उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ गया था और उनके शरीर के बाएं हिस्से में लकवा मार गया था। इतने वर्षों तक वह कहां रहे, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। जब उनकी सेहत में सुधार हुआ, तो उन्हें पता चला कि उनकी पेंशन परिवार को दी जा रही थी। उन्होंने बीएचयू के कुलसचिव कार्यालय में 7 और 25 नवंबर को पत्र भेजकर अपनी दावेदारी का प्रमाण प्रस्तुत किया और पारिवारिक पेंशन की रोकथाम की मांग की। इस मामले के सामने आने के बाद, बीएचयू ने 29 नवंबर को पारिवारिक पेंशन पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है। हालांकि, प्रशासन अब यह प्रमाणित करने की कोशिश कर रहा है कि रमाशंकर राम जीवित हैं।


गुमशुदगी के नियम
पेंशन अनुभाग के एक अधिकारी ने बताया कि किसी कर्मचारी की गुमशुदगी की स्थिति में नियमानुसार सात साल तक प्रतीक्षा की जाती है। इस अवधि के बाद, पुलिस रिपोर्ट और कोर्ट के आदेश पर उसे मृत मानकर परिवार की पेंशन शुरू की जाती है। रमाशंकर राम के मामले में भी पुराने अभिलेखों की जांच की जा रही है।