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बिहार विधानसभा चुनाव: लोकतंत्र की परीक्षा का पहला चरण शुरू

बिहार में विधानसभा चुनाव का पहला चरण शुरू हो चुका है, जिसमें 121 सीटों पर मतदान हो रहा है। यह चुनाव नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर की साख की परीक्षा है। गठबंधन की बदलती तस्वीर और मतदाता की जागरूकता इस बार चुनावी माहौल को खास बना रही है। क्या बिहार के मतदाता पुराने चेहरों को फिर से चुनेंगे या नई राजनीतिक शुचिता की शुरुआत करेंगे? जानें इस चुनाव के पहले चरण की महत्वपूर्ण बातें।
 

बिहार में चुनावी महायज्ञ का आरंभ

बिहार आज लोकतंत्र के मंच पर खड़ा है। 121 विधानसभा सीटों पर मतदान के साथ 2025 के चुनावी महायज्ञ का पहला चरण आरंभ हो चुका है। यह एक सामान्य चुनावी प्रक्रिया प्रतीत होती है, लेकिन इसके पीछे नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा, तेजस्वी यादव की विश्वसनीयता और प्रशांत किशोर की संभावनाओं की परीक्षा छिपी हुई है।


गठबंधन की बदलती तस्वीर

बिहार की राजनीति में अब गठबंधन स्थायी विचारधारा नहीं रह गए हैं, बल्कि ये चुनावी गणित का हिस्सा बन गए हैं। 2020 में जो सहयोगी थे, वे अब प्रतिद्वंदी बन चुके हैं। चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) अब एनडीए के साथ है, जबकि मुकेश सहनी की वीआईपी विपक्षी खेमे में शामिल हो गई है। यह बदलाव दर्शाता है कि बिहार में विचारों से ज्यादा वोट बैंक की गणना महत्वपूर्ण हो गई है।


मतदान का महत्व

आज जिन सीटों पर मतदान हो रहा है, वहां 2020 में महागठबंधन ने 61 और एनडीए ने 59 सीटें जीती थीं। माना जा रहा है कि इस बार केवल 0.37% वोट का अंतर निर्णायक हो सकता है। 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने इन्हीं सीटों पर 95 विधानसभा खंडों में बढ़त हासिल की थी, जिससे जनमत का रुख बदलने की संभावना है।


राजनीतिक बदलाव की संभावना

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या लोकसभा का रुख विधानसभा में भी दोहराया जाएगा या राज्य स्तर पर अलग जनभावना उभरेगी।


प्रशांत किशोर का नया प्रयास

इस बार का चुनाव केवल दो खेमों का नहीं है। प्रशांत किशोर ने ‘जन सुराज’ के रूप में नई शुरुआत की है। उनकी अपील जातीय समीकरणों से ऊपर सामाजिक सुधार और नीतिगत राजनीति की है, लेकिन यह देखना बाकी है कि बिहार के चुनावी मैदान में यह कितनी प्रभावी होगी। पहले चरण के 1,314 उम्मीदवारों में से 354 पर गंभीर आपराधिक मामले हैं, जो नैतिक प्रश्न भी खड़ा करते हैं। क्या बिहार के मतदाता फिर से ऐसे चेहरों को चुनेंगे जिन पर कानून का शिकंजा है? या यह चुनाव नई राजनीतिक शुचिता की शुरुआत करेगा?


मतदाता की जागरूकता

हालांकि मतदान केंद्रों पर उत्साह दिख रहा है, लेकिन बिहार में यह उत्साह अक्सर निराशा के साथ टकराता है। विकास, शिक्षा, और रोजगार जैसे मुद्दे हर चुनाव में उठते हैं, लेकिन हर बार अधूरे रह जाते हैं। इस बार मतदाता इन पुरानी प्रतिज्ञाओं की कसौटी पर नेताओं को परख रहे हैं।


राजनीतिक लोकसंस्कृति का जीवंत रूप

प्रधानमंत्री मोदी का “पहले मतदान, फिर जलपान” या प्रियंका गांधी का “अपने भविष्य को तय करने का दिन” केवल अपीलें नहीं हैं, बल्कि बिहार के मतदाता की चेतना को जगाने का प्रयास हैं। लालू प्रसाद यादव के परिवार का मतदान करना, तेजस्वी यादव की भावुक अपील, और एक नेता का भैंस पर सवार होकर मतदान केंद्र पहुँचना, ये सभी बिहार की राजनीतिक लोकसंस्कृति का जीवंत उदाहरण हैं।


चुनाव का पहला चरण

पहला चरण इस चुनाव का केवल प्रारंभ है, लेकिन इसमें पूरे चुनाव की दिशा के संकेत छिपे हैं। क्या नीतीश कुमार अपने गठबंधन की डगमगाती नाव को फिर पार लगाएंगे? क्या तेजस्वी यादव युवा जोश को वास्तविक सत्ता में बदल पाएंगे? या बिहार एक बार फिर ‘तीसरी ताकत’ की तलाश में निकलेगा? जो भी परिणाम हो, आज बिहार के मतदाता यह तय कर रहे हैं कि आने वाले पाँच वर्षों में लोकतंत्र केवल नारा रहेगा या वास्तविक जनादेश की शक्ति बनेगा।