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बिहार विधानसभा चुनाव: रिकॉर्ड मतदान और महिलाओं की बढ़ती भागीदारी

बिहार विधानसभा चुनाव में 6 नवंबर को 65% मतदान हुआ, जो न केवल एक सांख्यिकीय उपलब्धि है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक मनोविज्ञान का भी दर्पण है। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने इस चुनाव को खास बना दिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे अब केवल वोटर नहीं, बल्कि निर्णयकर्ता बन रही हैं। राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ भी दिलचस्प हैं, जिसमें आरजेडी और एनडीए के बीच टकराव देखने को मिल रहा है। इस चुनाव का परिणाम बिहार के सामाजिक पुनर्गठन की कहानी को दर्शाता है।
 

बिहार में मतदान का नया अध्याय

बिहार की जनता ने 6 नवंबर को विधानसभा चुनावों के पहले चरण में लगभग 65 प्रतिशत मतदान करके अपने राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। यह केवल एक सांख्यिकीय उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक मनोविज्ञान का भी प्रतिबिंब है। चुनाव आयोग ने इस उत्साह का स्वागत किया है, जबकि विभिन्न राजनीतिक दल इसे अपने पक्ष में भुनाने में लगे हैं। इस भारी मतदान ने विपक्ष के उन आरोपों को भी खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि मतदाताओं को वोट डालने से रोकने के लिए साजिश की गई थी।


मतदाता भागीदारी का महत्व

हालांकि बिहार विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार बहुत उत्साहजनक नहीं रहा, पहले चरण में 121 सीटों पर मतदाताओं की भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य की जनता उदासीन नहीं है। पिछले तीन चुनावों की तुलना करें तो 2010 में 52.73%, 2015 में 56.91% और 2020 में 57.29% मतदान हुआ था, जबकि इस बार मतदान प्रतिशत 64.66% रहा है। यह केवल एक संख्या नहीं, बल्कि जन-सक्रियता का संकेत है। अब सवाल यह है कि यह सक्रियता किसके पक्ष में जाएगी?


राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ भी दिलचस्प हैं। आरजेडी के तेजस्वी यादव ने इसे “महागठबंधन की जीत की मुहर” बताया, जबकि भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने दावा किया कि “पहले चरण की 100 सीटें एनडीए की झोली में” जाएँगी। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने इसे “परिवर्तन की प्यास” कहा। इस चुनाव में दो विरोधाभासी नैरेटिव सामने आ रहे हैं: एक ओर नीतीश कुमार का “सुशासन और स्थिरता” का नारा है, दूसरी ओर महागठबंधन “नौकरी, महंगाई और असंतोष” का मुद्दा उठा रहा है।


महिला मतदाताओं की भूमिका

इस चुनाव में महिला मतदाता सबसे निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भारी मतदान एनडीए के लिए फायदेमंद होगा। 2020 में जिन 43 सीटों पर महिलाओं ने अधिक मतदान किया, उनमें से 27 एनडीए को मिली थीं। नीतीश कुमार का महिला-केन्द्रित कल्याण मॉडल इस समीकरण का मुख्य बिंदु है, जिसमें साइकिल योजना, छात्रवृत्ति, आरक्षण और ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY)’ शामिल हैं।


सामाजिक परिवर्तन और चुनौतियाँ

नीतीश कुमार की यह योजना केवल चुनावी गिमिक नहीं, बल्कि बिहार के ग्रामीण और निम्नवर्गीय समाज में ‘सशक्तिकरण के अर्थशास्त्र’ की पुनर्व्याख्या है। इस योजना के तहत 1.21 करोड़ महिलाओं को ₹10,000 की पहली किश्त दी जा चुकी है। यह केवल नकद हस्तांतरण नहीं, बल्कि महिलाओं को उद्यमिता की दिशा में प्रेरित करने का प्रयास है। हालांकि, इस सशक्तिकरण का एक सामाजिक दुष्परिणाम भी दिखने लगा है, जहां पुरुषों की शिकायतें बढ़ रही हैं।


बदलाव की चाह

इस रिकॉर्ड मतदान का एक राजनीतिक अर्थ यह भी है कि लोग बदलाव चाहते हैं, लेकिन किस दिशा में, यह स्पष्ट नहीं है। नीतीश कुमार के 20 वर्षों के शासन का अनुभव थकान भरा है, जबकि उनके शासन में बनी स्थिरता और सुरक्षा की भावना भी है। महागठबंधन बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ रहा है, जबकि एनडीए “विकास और सुशासन” के नारे पर टिका है। उच्च मतदान को सरकार विरोधी लहर का प्रमाण मानना जल्दबाज़ी होगी।


मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप

विपक्ष ने विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर चुनाव आयोग पर “मतदाता सूची में गड़बड़ी” का आरोप लगाया था। 65 लाख नाम हटाए जाने के बावजूद, रिकॉर्ड मतदान यह साबित करता है कि जनता का भरोसा चुनावी प्रक्रिया में बरकरार है। 2020 की तुलना में 7 प्रतिशत अधिक मतदान इस बात का संकेत है कि “डिलीटेड वोटर्स की जगह नए मतदाता खड़े हुए हैं।”


निष्कर्ष

बिहार का यह रिकॉर्ड मतदान केवल एक चुनाव नहीं, बल्कि राज्य के सामाजिक पुनर्गठन की कहानी है। यह उस समाज की तस्वीर है जहाँ महिलाएँ अब निर्णयकर्ता बन चुकी हैं। यदि यह मतदान बदलाव का संकेत है, तो यह नीतीश कुमार के विरुद्ध नहीं, बल्कि उनके द्वारा बनाए गए नए सामाजिक समीकरणों से उपजा बदलाव है। बिहार का 65 प्रतिशत मतदान इस बात की याद दिलाता है कि लोकतंत्र तब सबसे सुंदर दिखता है जब जनता वोटिंग बूथ को उत्सव बना देती है— और बिहार ने यह उत्सव पूरे जोश से मनाया है।