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बिहार विधानसभा चुनाव: चिराग पासवान की सीट बंटवारे पर अड़ान

बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और चिराग पासवान अपनी पार्टी के लिए अधिक सीटें जीतने के लिए प्रयासरत हैं। एनडीए और महागठबंधन के बीच सीट बंटवारे पर बातचीत जारी है, लेकिन चिराग की मांगें भाजपा के लिए चुनौती बन गई हैं। क्या चिराग पासवान अपनी मांगों को मनवाने में सफल होंगे? जानें इस चुनावी परिदृश्य में उनकी रणनीतियाँ और भाजपा की चिंताएँ।
 

बिहार में चुनावी तैयारियाँ

बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। मुख्य मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच होगा। हालांकि, दोनों गठबंधनों के बीच सीट बंटवारे पर अभी तक अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है। एनडीए के लिए चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं, खासकर जब लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं।


चिराग पासवान की रणनीति

चिराग पासवान पिछले साल लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के सफल प्रदर्शन के बाद इस बार अधिक सीटें जीतने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार की कानून-व्यवस्था पर सार्वजनिक रूप से आलोचना की है। सूत्रों के अनुसार, पासवान ने सीट बंटवारे की बातचीत में अपनी पार्टी के लिए 40 विधानसभा सीटों की मांग की है, जबकि भाजपा ने उन्हें अधिकतम 25 सीटें देने की पेशकश की है।


भाजपा और चिराग पासवान के बीच तनाव

लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान, जो वर्तमान में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हैं, भविष्य में अपनी पार्टी को और अधिक लोकप्रियता दिलाने के लिए केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका की मांग कर सकते हैं। भाजपा को यह भी पता है कि चिराग को अधिक रियायतें देने से उनके अन्य सहयोगी, विशेषकर जदयू, नाराज़ हो सकते हैं। चिराग का नीतीश कुमार के साथ विवाद का इतिहास रहा है, और भाजपा अपने सहयोगी को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकती।


चुनाव में लोजपा का प्रदर्शन

रामविलास पासवान के निधन के बाद 2020 के बिहार चुनाव में लोजपा ने अकेले चुनाव लड़ा था, जिसमें उसने एक सीट जीती और नौ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। भाजपा को यह चिंता है कि चिराग पासवान इस बार और अधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं। वह संकेत दे रहे हैं कि यदि उनकी सीट बंटवारे की मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वह अकेले चुनाव लड़ सकते हैं।


चिराग पासवान का भविष्य

हालांकि चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री पद की इच्छा का सार्वजनिक रूप से उल्लेख नहीं किया है, लेकिन वे खुद को भविष्य में शीर्ष पद के दावेदार के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। 'बिहार पहले, बिहारी पहले' जैसे अभियानों और चिराग का चौपाल जैसे जनसंपर्क कार्यक्रमों के माध्यम से, वे यह संदेश दे रहे हैं कि वे केवल एनडीए के सदस्य नहीं हैं, बल्कि एक मजबूत राजनीतिक ताकत हैं। भाजपा के लिए अब चिराग पासवान की उम्मीदों पर खरा उतरना और एनडीए में जेडीयू व अन्य दलों को नाराज़ न करने की चुनौती है।