बिहार विधानसभा चुनाव: आरएलजेपी की नई रणनीतियाँ और चुनौतियाँ
बिहार में विधानसभा चुनावों की तैयारी तेज हो गई है, जहां आरएलजेपी अपनी नई रणनीतियों के साथ चुनावी मैदान में उतरने की योजना बना रही है। पशुपति पारस, जो पहले केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, अब अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले चुनावों में मिली असफलताओं के बावजूद, आरएलजेपी ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। क्या वे इस बार सफलता प्राप्त कर पाएंगे? जानिए इस लेख में आरएलजेपी की चुनौतियों और भविष्य की योजनाओं के बारे में।
Nov 5, 2025, 13:12 IST
बिहार में सियासी हलचल
बिहार में इस वर्ष विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। सत्ताधारी जनतांत्रिक गठबंधन और विपक्षी महागठबंधन चुनावी मुकाबले को बहुकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच, विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। पशुपति पारस की पार्टी, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी), चुनावी मैदान में उतरने के लिए एक ठोस रणनीति पर काम कर रही है। हालांकि, राज्य विधानसभा और राष्ट्रीय संसद में उनकी पार्टी की उपस्थिति बहुत कम है।
पशुपति पारस का राजनीतिक सफर
पिछले साल के लोकसभा चुनावों तक, पशुपति पारस केंद्र में मंत्री थे। उनकी पार्टी ने चुनाव में 6 सीटों पर दावेदारी की थी, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि पशुपति पारस राजनीतिक रूप से हाशिए पर चले गए हैं। फिर भी, आरएलजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। पार्टी अब जमीनी स्तर पर संगठन और दलित सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
आरएलजेपी का गठन और विकास
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना अक्टूबर 2021 में हुई थी, जिसका नेतृत्व पशुपति कुमार पारस ने किया। पहले यह एकीकृत लोक जनशक्ति पार्टी का हिस्सा थी, लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद यह दो भागों में विभाजित हो गई। एक हिस्सा चिराग पासवान के नेतृत्व में और दूसरा आरएलजेपी के रूप में। आरएलजेपी पहले एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन 2025 में इसने गठबंधन तोड़ दिया।
चुनौतियाँ और भविष्य
संख्याबल के दृष्टिकोण से, आरएलजेपी के पास लोकसभा और राज्यसभा में कोई सदस्य नहीं है, और बिहार विधानसभा में भी इसका प्रतिनिधित्व शून्य है। विधान परिषद में केवल एक सदस्य है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बिहार विधानसभा चुनाव में पशुपति कुमार पारस अपनी पार्टी को सफल बना पाएंगे। केंद्रीय मंत्री रहते हुए उनके पास दलित नेता के रूप में खुद को स्थापित करने का अवसर था, लेकिन वह इसे भुना नहीं सके।
पशुपति पारस की पार्टी की कहानी लोकसभा चुनाव में ही लिखी जा चुकी थी, जहां राज्य की 40 सीटों के लिए सीट शेयरिंग में उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। इसके अलावा, उन्हें हाजीपुर सीट से भी हाथ धोना पड़ा, जहां से वह सांसद थे।