बिहार में मां के दूध में यूरेनियम की खोज: नवजातों के लिए खतरा
भूजल प्रदूषण का गंभीर प्रभाव
नवजात शिशुओं के लिए मां का दूध सबसे सुरक्षित और पवित्र पोषण माना जाता है। लेकिन बिहार में एक चिंताजनक स्थिति सामने आई है, जहां भूजल प्रदूषण ने नवजातों के जीवन की शुरुआत को खतरे में डाल दिया है।
एक प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, राज्य के छह जिलों में हर स्तनपान कराने वाली महिला के दूध में यूरेनियम की उपस्थिति पाई गई है। यह केवल एक वैज्ञानिक खोज नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर सच्चाई है कि जहर अब सीधे मां के दूध के माध्यम से बच्चों के शरीर में प्रवेश कर रहा है। यह अध्ययन पटना के महावीर कैंसर संस्थान के डॉक्टर अरुण कुमार और प्रोफेसर अशोक घोष के नेतृत्व में किया गया था।
भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा में 17 से 35 वर्ष की उम्र की 40 महिलाओं के दूध के नमूनों की जांच की गई। सभी नमूनों में यूरेनियम (U238) पाया गया। यह जानकर हैरानी होती है कि किसी भी देश या संस्था ने मां के दूध में यूरेनियम की सुरक्षित मात्रा निर्धारित नहीं की है।
खगड़िया जिले में सबसे अधिक औसत प्रदूषण दर्ज किया गया, जबकि नालंदा में सबसे कम। कटिहार में एक नमूने में उच्चतम स्तर पाया गया। अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 70% शिशु ऐसे स्तर के संपर्क में आए हैं जो गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह खतरा विशेष रूप से उन बच्चों के लिए है जिनका विकास अभी हो रहा है।
अध्ययन के सह-लेखक डॉक्टर अशोक शर्मा ने बताया कि यह स्पष्ट नहीं है कि यूरेनियम पानी में कैसे पहुंचा। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इस मामले की जांच कर रहा है। लेकिन यह तथ्य कि यूरेनियम खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर चुका है, एक गंभीर चिंता का विषय है।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने माताओं को सलाह दी है कि उन्हें अपने बच्चों को दूध पिलाना बंद नहीं करना चाहिए, क्योंकि मां का दूध बच्चे के विकास और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए आवश्यक है।