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बिहार में पशुपालन: स्वरोजगार का नया माध्यम

बिहार में पशुपालन तेजी से विकसित हो रहा है, जहां लोग इसे जीवन-निर्वहन के बजाय स्वरोजगार का माध्यम मान रहे हैं। राज्य सरकार ने पिछले पांच वर्षों में इस क्षेत्र में 250 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। खासकर महिलाएं इस क्षेत्र में सशक्त हो रही हैं। जानें कैसे विभिन्न योजनाओं के तहत अनुदान प्रदान किया जा रहा है और इससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हो रही है।
 

बिहार में पशुपालन का विकास

बिहार पशुपालन के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। अब राज्य के लोग इसे केवल जीवन-निर्वहन के लिए नहीं, बल्कि स्वरोजगार के अवसर के रूप में देख रहे हैं। इस दिशा में बिहार सरकार का पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। पिछले पांच वर्षों में, पशुपालन के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत लगभग 250 करोड़ रुपये का अनुदान प्रदान किया गया है, जिसका सकारात्मक प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। खासकर महिलाएं इस क्षेत्र में स्वरोजगार प्राप्त कर सशक्त हो रही हैं।


सरकारी योजनाएं और अनुदान

पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग गाय और भैंस पालन से संबंधित कई योजनाओं का संचालन कर रहा है। इन योजनाओं के तहत राज्य के बेरोजगार युवाओं और किसानों को डेयरी स्थापित करने के लिए लागत का 75 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। समग्र गव्य विकास योजना और देशी गौ पालन योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को 50 से 75 प्रतिशत तक अनुदान मिलता है। पिछले पांच वर्षों में इस योजना के तहत 178.03 करोड़ रुपये का अनुदान वितरित किया गया है।


अन्य विकास योजनाएं

इसके अलावा, समेकित बकरी एवं भेड़ विकास योजना में 50 से 60 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है, जिसके तहत पिछले 5 वर्षों में 19.15 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया है। समेकित मुर्गी विकास योजना के अंतर्गत प्रति योजना 30 से 40 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है, जिसमें पिछले 5 वर्षों में 41.67 करोड़ रुपये का अनुदान शामिल है। बिहार सरकार की यह पहल राज्य में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने और बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने में सहायक सिद्ध हुई है।