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बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की हार: रणनीति और वास्तविकता का टकराव

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, जबकि NDA ने शानदार सफलता हासिल की। इस लेख में हम उनकी चुनावी रणनीति, सोशल मीडिया पर प्रभाव और बिहार की राजनीति में बदलावों पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे वोटरों ने अपने अधिकारों का उपयोग किया और भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत की।
 

प्रशांत किशोर की चुनावी यात्रा

बिहार चुनाव में PK की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली


बिहार में प्रशांत किशोर (PK) की राजनीतिक यात्रा एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ गई है। पिछले तीन वर्षों से वे गांव-गांव जाकर जनता की राय जानने का प्रयास कर रहे थे। 2024 में जन सुराज पार्टी (JSP) की स्थापना के बाद, उन्होंने 2025 के विधानसभा चुनाव में भाग लिया। हालांकि, 243 सीटों में से उन्हें कोई भी सीट नहीं मिली, और जनता ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। इसका मुख्य कारण उनका आत्मविश्वास और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ उनकी कट्टरता थी।


प्रशांत किशोर ने बार-बार कहा कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया जाएगा, लेकिन उनकी यह बात जनता को प्रभावित नहीं कर सकी। उनका अहंकार उनके लिए नुकसानदायक साबित हुआ।


सोशल मीडिया पर प्रभाव लेकिन वास्तविकता से दूर

प्रशांत किशोर, जो आंकड़ों के विशेषज्ञ माने जाते थे, चुनावी रण में पूरी तरह असफल रहे। कुछ लोगों का मानना था कि उन्हें भाजपा के समर्थन से चुनाव में उतारा गया था, लेकिन वे न तो किसी गठबंधन का वोट काट सके और न ही किसी पार्टी का समर्थन बढ़ा सके। वे केवल सोशल मीडिया पर ही सक्रिय रहे, जबकि वास्तविकता में उनका कोई ठोस आधार नहीं था।


वे अरविंद केजरीवाल की तरह चुनाव जीतने का सपना देख रहे थे, लेकिन केजरीवाल ने अन्ना आंदोलन से शुरुआत की थी और लंबे समय तक एनजीओ चलाया था। इसके विपरीत, प्रशांत किशोर केवल चुनावी रणनीति बनाने में लगे रहे।


राजनीतिक रणनीति का महत्व

प्रशांत किशोर ने कहा था कि उनकी पार्टी या तो ऊंचाई पर होगी या फिर गिर जाएगी। इस भविष्यवाणी में वे सही साबित हुए और अब उन्हें यह समझना होगा कि राजनीतिक रणनीतिकार हमेशा पीछे रहते हैं। उदाहरण के लिए, चाणक्य ने कभी सत्ता की इच्छा नहीं जताई, जबकि उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को सत्ता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


हालांकि, प्रशांत किशोर ने कुछ अच्छे मुद्दे उठाए, लेकिन वे जनता की नब्ज को समझने में असफल रहे। गांव-गांव घूमने से पहचान तो बनती है, लेकिन इससे कोई नेता नहीं बनता।


बिहार में वोटिंग का नया ट्रेंड

बिहार में इस बार वोटिंग का तरीका अलग था। लोग वोट डालने के लिए अपने गांवों से बाहर गए। उदाहरण के लिए, एक घरेलू कामकाजी महिला ने अपनी छुट्टी लेकर वोट डालने का निर्णय लिया। यह सब चुनाव आयोग के डर के कारण हुआ, क्योंकि उन्हें बताया गया था कि वोट न डालने पर उन्हें कई लाभ नहीं मिलेंगे।


इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में NDA को शानदार सफलता मिली है। चिराग पासवान की LJP ने सभी सीटें जीतीं, और भाजपा का प्रदर्शन भी बेहतरीन रहा। इससे भाजपा का हौसला बढ़ा है।


भाजपा की बढ़ती ताकत

बिहार में NDA को मिले वोटों का एक कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर जनता का विश्वास है। गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव में पूरी ताकत लगाई, जिसका लाभ NDA को मिला। महिलाओं को 10,000 रुपये मिलने से उन्होंने भी वोट दिया।


तेजस्वी यादव की घोषणाएं भी कोई असर नहीं दिखा सकीं। महागठबंधन को NDA के बराबर दिखाने वाले सैफोलॉजिस्ट भी गलत साबित हुए। बिहार के जनादेश ने सभी को उनकी वास्तविकता बता दी है।