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बिहार चुनाव में जन सुराज पार्टी की चुनौतियाँ और प्रशांत किशोर की रणनीतियाँ

बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने कोई सीट नहीं जीती, जबकि उनके प्रचार में भारी भीड़ शामिल हुई। इस लेख में हम पार्टी की असफलता के पीछे के कारणों का विश्लेषण करेंगे, जिसमें संगठन की कमी, जल्दबाज़ी, नीरस संदेश, भ्रांतियाँ और चुनावी मैदान से अनुपस्थिति शामिल हैं। जानें कि कैसे प्रशांत किशोर की रणनीतियाँ चुनावी परिणामों को प्रभावित कर गईं।
 

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का चुनावी सफर

बिहार विधानसभा चुनाव में 'एक्स फैक्टर' मानी जा रही प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जेएसपी) अब तक 243 सदस्यीय विधानसभा में कोई सीट नहीं जीत पाई है। पूर्व राजनीतिक रणनीतिकार द्वारा स्थापित इस पार्टी ने बेरोज़गारी, पलायन और उद्योगों की कमी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर जोरदार प्रचार किया, लेकिन वोट हासिल करने में असफल रही। प्रशांत किशोर ने तीन वर्षों तक बिहार का दौरा किया और अपनी पार्टी को राज्य की जाति-आधारित राजनीति का विकल्प बताया।


 


प्रशांत किशोर ने सही भविष्यवाणी की थी कि उनका जन सुराज या तो "अर्श पर" होगा या "फर्श पर"। फिलहाल, उनकी पार्टी के लिए स्थिति फर्श पर है। हालांकि, उनके रोड शो और रैलियों में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए, फिर भी उनकी पार्टी को कोई सफलता नहीं मिली। इसके पीछे के पांच मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:


 


1- संगठन की कमी


प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान चर्चा का विषय बना, लेकिन अन्य राजनीतिक दलों की तरह बूथ स्तर पर मजबूत संगठन नहीं बना सका। विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में जीत के लिए जातीय नेटवर्क और स्थानीय निष्ठाओं की आवश्यकता है। किशोर के आंदोलन में संगठनात्मक मजबूती की कमी थी। 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा और बड़े आयोजनों ने पहचान तो बनाई, लेकिन यह वोटों में नहीं बदल सकी।


 


2- जल्दबाज़ी


जन सुराज के पास केवल एक नेता, प्रशांत किशोर, थे। पार्टी का अभियान शीर्ष स्तर पर केंद्रित रहा, जबकि मध्यम स्तर के नेताओं की कमी थी। ज़मीनी स्तर पर, लोग केवल एक ही नाम से परिचित थे।


 


3- नीरस संदेश


प्रशांत किशोर का बार-बार दोहराया गया संदेश कि बिहार को नए राजनीतिक विकल्प की आवश्यकता है, शुरू में प्रभावी था, लेकिन बाद में यह उबाऊ हो गया। मतदाता यह जानना चाहते थे कि उनके पास घोषणापत्र क्यों नहीं है और वे कैसे अलग हैं। कई लोग किशोर के रोड शो में शामिल होकर भी किसी और को वोट देने का विचार कर रहे थे।


 


4- भ्रांतियाँ


प्रशांत किशोर ने अपने चुनावी प्रचार में विकास का मुद्दा उठाया, लेकिन बिहार का चुनावी गणित पहचान और जातिगत एकजुटता पर आधारित है। जन सुराज में पहचान के आधार पर गठबंधन की कमी थी।


 


5- चुनावी मैदान से अनुपस्थिति


कई लोगों ने सवाल उठाया कि किशोर ने चुनाव क्यों नहीं लड़ा। क्या यह आत्मविश्वास की कमी थी? इससे भ्रम पैदा हुआ और कई समर्थक असमंजस में पड़ गए। कुछ प्रमुख नामों को छोड़कर, जन सुराज के उम्मीदवारों को 'बेकार सेना' कहा गया।