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बिहार चुनाव 2025: महागठबंधन की चुनावी रणनीति में कमी, एनडीए को चुनौती देने में मुश्किलें

बिहार में चुनावी हलचल तेज हो गई है, लेकिन महागठबंधन की चुनावी रणनीति में कमी नजर आ रही है। एनडीए के खिलाफ चुनौती देने के लिए महागठबंधन को सीट बंटवारे में उलझनों का सामना करना पड़ रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की चुनावी सक्रियता में कमी आई है, जिससे महागठबंधन की स्थिति कमजोर होती जा रही है। जानें इस चुनावी परिदृश्य में आगे क्या हो सकता है।
 

बिहार में चुनावी हलचल

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव.

बिहार में नामांकन की समयसीमा समाप्त होने के बाद चुनावी रैलियों का दौर शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ एनडीए में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई प्रमुख राजनीतिक नेता प्रचार में जुट गए हैं। वहीं, महागठबंधन में चुनाव प्रचार की गतिविधियाँ अपेक्षाकृत कम नजर आ रही हैं। राष्ट्रीय जनता दल ने दूसरे चरण की नामांकन प्रक्रिया से पहले 143 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, लेकिन सीटों के बंटवारे में उलझन के कारण महागठबंधन की प्रचार गतिविधियों में कमी आई है।

महागठबंधन, जो राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व में है, सीटों के बंटवारे को अंतिम समय तक तय नहीं कर सका है। इस स्थिति में, एनडीए को चुनौती देने के लिए 243 सीटों वाले विधानसभा में 252 उम्मीदवारों को उतारा गया है, जिससे कई सीटों पर प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।


महागठबंधन में सामूहिक प्रचार की कमी

डेढ़ महीने से सामूहिक प्रचार नहीं

महागठबंधन की एकता की स्थिति यह है कि एक सितंबर को पटना में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा के बाद से कोई सामूहिक प्रचार नहीं हुआ है। राहुल गांधी ने बिहार में चुनाव प्रचार से दूरी बना ली है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पहले रैलियाँ शुरू की थीं, लेकिन अब वे भी ठंडे पड़ गए हैं।

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने महिलाओं को आकर्षित करने के लिए जिम्मेदारी ली थी, लेकिन 24 सितंबर को पश्चिमी चंपारण में रैली के बाद उन्होंने भी प्रचार से दूरी बना ली है। इसके अलावा, बिहार के हर प्रमंडल में रैली का आयोजन करने की योजना थी, जिसमें महागठबंधन के नेता शामिल होने वाले थे, लेकिन यह भी अधर में है।


संयुक्त घोषणापत्र का कार्य रुका

संयुक्त घोषणापत्र का काम अटका

महागठबंधन ने एनडीए के खिलाफ माहौल बनाने के लिए संयुक्त घोषणापत्र बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन सीट बंटवारे की उलझनों के कारण यह कार्य भी ठप हो गया है। कांग्रेस को आरजेडी से अपेक्षित सीटें नहीं मिलीं, और पार्टी के कुछ नेताओं ने अपने परिवार के लिए टिकट की मांग की थी, जो उन्हें नहीं मिली। इस कारण वे भी नाखुश हैं और प्रचार में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।


तेजस्वी यादव की प्रचार में कमी

तेजस्वी की प्रचार में दिख रही सुस्ती

तेजस्वी यादव भी चुनाव प्रचार में सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। राहुल के साथ यात्रा के बाद उन्होंने अकेले प्रचार यात्रा शुरू की थी, लेकिन यह 20 सितंबर को समाप्त हो गई। पड़ोसी राज्य झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी चुनाव से दूरी बना ली है।


महागठबंधन की चुनावी स्थिति

ममता-अखिलेश का क्या होगा

बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन और अन्य राज्यों में इंडिया गठबंधन के नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए बुलाने की योजना थी, लेकिन यह भी अभी तक अधर में है। कुल मिलाकर, महागठबंधन चुनाव प्रचार में कमजोर नजर आ रहा है। चुनाव में जीत और हार का पता तो बाद में चलेगा, लेकिन एनडीए के मुकाबले महागठबंधन की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है।

वोटर अधिकार यात्रा के दौरान जो ऊर्जा और समन्वय महागठबंधन के नेताओं में था, उसे अब बनाए रखना मुश्किल हो रहा है।