बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का उदय: 2000 के विधानसभा चुनाव की कहानी
बिहार की राजनीतिक स्थिति का बदलाव
साल 2000 में बिहार की राजनीति ने एक नया मोड़ लिया। लालू प्रसाद यादव के शासन के दस साल पूरे हो चुके थे। नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस की समता पार्टी अब एनडीए का हिस्सा बन चुकी थी, जबकि केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक साल पहले सत्ता में आई थी। इस समय बिहार में 12वें विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी। लालू यादव, जो पहले से ही अपनी जमीनी राजनीति के लिए जाने जाते थे, अब 940 करोड़ के चारा घोटाले के कारण बदनाम हो चुके थे। इस वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया। राज्य में बढ़ते अपराध और घटती विकास दर ने लालू-राबड़ी सरकार को 'जंगल राज' का तमगा दे दिया। यह मुद्दा एनडीए के लिए चुनावी प्रचार का मुख्य आधार बना।
नीतीश कुमार की पहली शपथ
चुनाव परिणाम 26 फरवरी को घोषित हुए। हालांकि, एनडीए की उम्मीदों के विपरीत, आरजेडी 124 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि एनडीए केवल 122 सीटों पर सिमट गई। उस समय बिहार विधानसभा में कुल 324 सीटें थीं, और बहुमत के लिए 163 सीटों की आवश्यकता थी। इस स्थिति ने राजनीतिक जोड़तोड़ की शुरुआत की। बिहार के राज्यपाल विनोद चंद्र पांडे ने बहुमत न होने के बावजूद एनडीए को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया। इसके बाद, 3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लालू प्रसाद यादव ने इस निर्णय के खिलाफ बिहार बंद का आह्वान किया।
नीतीश कुमार का इस्तीफा
शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार को विश्वास मत हासिल करना था। दोनों पक्षों ने समर्थन जुटाना शुरू किया। 10 मार्च 2000 को विधानसभा में बजट पेश किया गया, लेकिन नीतीश कुमार ने विश्वास मत से पहले ही इस्तीफा दे दिया। शपथ ग्रहण के केवल 7 दिन बाद, उनके पास केवल 151 विधायकों का समर्थन था, जिससे उनका पहला कार्यकाल समाप्त हो गया।
राजद की वापसी और चुनावी बदलाव
बिहार की सत्ता फिर से राजद के हाथों में आ गई, और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। 2005 के चुनावों में स्थिति पूरी तरह बदल गई। फरवरी 2005 में झारखंड के अलग होने के बाद चुनाव हुए, जिसमें राजद ने 215 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन केवल 75 सीटें जीतीं। जदयू और भाजपा गठबंधन ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें जदयू ने 55 और भाजपा ने 37 सीटें जीतीं। इस तरह, एनडीए बहुमत से दूर रह गया।
लालू का नीतीश पर बयान
लालू यादव ने उस समय कहा था कि नीतीश कुमार कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। अक्टूबर-नवंबर में फिर चुनाव हुए, और नीतीश कुमार ने एनडीए की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद संभाला। पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूमती रही है।