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बहुपति विवाह: एक पुरानी परंपरा का आधुनिक संदर्भ

बहुपति विवाह एक पुरानी परंपरा है, जो आज के समाज में विवादास्पद मानी जाती है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे समय के साथ महिलाओं के अधिकारों में बदलाव आया है और इस प्रथा के नकारात्मक प्रभाव क्या हो सकते हैं। हिमाचल और अरुणाचल प्रदेश में इस प्रथा का इतिहास और तिब्बत में इसकी वर्तमान स्थिति पर भी चर्चा की जाएगी। क्या शिक्षा और जागरूकता इस प्रथा को समाप्त कर सकती है? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

बहुपति विवाह की परंपरा

Here only one girl becomes the wife of all the brothers in the house, this is how time is divided


पारंपरिक बहुपति विवाह की प्रथा में महिलाओं के प्रति समाज का दृष्टिकोण कभी बहुत कठोर था। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं मिलते थे और वे अक्सर पर्दे में रहती थीं। समय के साथ, महिलाओं ने सशक्तिकरण की दिशा में कदम बढ़ाए हैं और अब उनके अधिकारों में सुधार हुआ है। फिर भी, कुछ क्षेत्रों में पुरानी परंपराओं का पालन किया जाता है, जिसमें बहुपति विवाह शामिल है।


हालांकि, आज के समय में बहुपति विवाह को अवैध माना जाता है और कई देशों में इसे कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया है। इस प्रथा के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे महिलाओं का शोषण और पुरुषों के बीच संतानों के लिए संघर्ष।


कुछ साल पहले तक, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में बहुपति विवाह की घटनाएं आम थीं, विशेषकर किन्नौर में। पिछले एक दशक में इस प्रथा के बारे में कम सुनने को मिला है, लेकिन तिब्बत में यह अभी भी प्रचलित है। वहाँ, शादी के बाद सबसे पहले पत्नी के साथ बड़ा भाई समय बिताता है, उसके बाद अन्य भाई अपनी उम्र के अनुसार पत्नी के साथ समय बिताते हैं।


आज के युग में, बहुपति विवाह से बचने के लिए शिक्षा और जागरूकता का महत्व बढ़ गया है, ताकि लोग पुरानी परंपराओं से दूर रह सकें और अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभा सकें।