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बर्बरीक की कथा: खाटू श्याम बाबा का महाभारत में योगदान

इस लेख में बर्बरीक की कथा का वर्णन किया गया है, जो खाटू श्याम बाबा के रूप में प्रसिद्ध हैं। जानें कैसे उन्होंने महाभारत के युद्ध में भाग लिया और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई। बर्बरीक की वीरता और उनके अद्भुत दान की कहानी आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
 

बर्बरीक की कथा


Khatu Shyam Baba Barbarik Ki Katha: हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है, का आयोजन होता है। इस साल यह विशेष दिन एक नवंबर को मनाया जाएगा। इसी दिन खाटू श्याम बाबा का जन्मदिन भी धूमधाम से मनाया जाता है। राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम बाबा का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। खाटू श्याम बाबा का असली नाम बर्बरीक है।


महाभारत के अनुसार, बर्बरीक का सिर खाटू नगर में दफनाया गया था, जिसके कारण वे खाटू श्याम बाबा के नाम से जाने जाते हैं। उन्हें कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। आइए जानते हैं महाभारत में बर्बरीक की भूमिका के बारे में।


बर्बरीक का वीरता से भरा बचपन


कथा के अनुसार, बर्बरीक घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र थे। उनके दादा भीम और दादी हिडिम्बा थे। कहा जाता है कि बर्बरीक का जन्म एक बब्बर शेर की तरह के बालों के साथ हुआ था, इसलिए उनका नाम बर्बरीक रखा गया। वे बचपन से ही वीर और तेजस्वी थे और भगवान श्रीकृष्ण तथा अपनी मां से युद्धकला में निपुणता हासिल की।


बर्बरीक ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की, जिसके फलस्वरूप उन्हें तीन अद्भुत बाण प्राप्त हुए। इसके अलावा, भगवान अग्निदेव से उन्हें एक दिव्य धनुष भी मिला, जिससे वे तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे। जब उन्हें महाभारत के युद्ध की सूचना मिली, तो उन्होंने निर्णय लिया कि वे भी इस युद्ध में भाग लेंगे और अपनी मां का आशीर्वाद लिया।


ब्राह्मण का असली रूप श्रीकृष्ण


जब बर्बरीक युद्ध के लिए निकले, तो उन्हें रास्ते में एक ब्राह्मण मिले, जो वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण थे। उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि उनके पास केवल तीन बाण हैं, फिर भी वे युद्ध में कैसे जाएंगे। बर्बरीक ने उत्तर दिया कि वे एक बाण से शत्रु सेना को समाप्त कर सकते हैं।


इसके बाद, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को एक पीपल के पेड़ की ओर इशारा किया और कहा कि वे एक बाण से सभी पत्तों को भेद दें। बर्बरीक ने ध्यान लगाकर एक बाण छोड़ा, जिसने सभी पत्तों को छेद दिया।


श्रीकृष्ण का बर्बरीक के प्रति सम्मान


उस बाण ने भगवान के पैरों के चारों ओर मंडराना शुरू कर दिया। श्रीकृष्ण ने एक पत्ता अपने पैरों के नीचे छिपा रखा था। बर्बरीक ने इसे समझ लिया और कहा कि ब्राह्मण अपना पैर हटा लें। इस पर श्रीकृष्ण बर्बरीक की प्रतिभा से प्रसन्न हुए और पूछा कि वे किसकी ओर से युद्ध लड़ने जा रहे हैं। बर्बरीक ने कहा कि उन्होंने अभी तक यह तय नहीं किया है।


बर्बरीक ने कहा कि वे अपने वचन के अनुसार, हारे हुए पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेंगे। श्रीकृष्ण ने यह जानकर विचार किया कि इस युद्ध में कौरवों की हार निश्चित है। फिर उन्होंने बर्बरीक से एक दान देने का वचन मांगा। बर्बरीक ने सहर्ष स्वीकार किया।


युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की


बर्बरीक ने कहा कि वे अपना सिर दान में देंगे, लेकिन पहले ब्राह्मण को अपना असली परिचय देना होगा। इस पर श्रीकृष्ण ने अपने असली रूप में प्रकट होकर बर्बरीक को अपना सिर दान देने के लिए कहा। बर्बरीक ने अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण को दे दिया, लेकिन उन्होंने भगवान से युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की।


श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की इच्छा को पूरा करने का आश्वासन दिया और उनके सिर को 14 देवियों द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थापित कर दिया, ताकि वे युद्ध देख सकें। बाद में, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया।


बर्बरीक ने विजय का रहस्य बताया


महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय हुई। जब जीत के श्रेय को लेकर विवाद हुआ, तो श्रीकृष्ण ने कहा कि बर्बरीक ने युद्ध देखा है, उनसे पूछ लिया जाए। तब बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय केवल श्रीकृष्ण को ही जाता है। उनके सत्य वचन सुनकर देवताओं ने उन पर फूलों की वर्षा की।


श्रीकृष्ण बर्बरीक की महानता से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे खाटू श्याम के नाम से प्रसिद्ध होंगे। कलियुग में उनकी पूजा होगी और वे भक्तों की इच्छाओं को पूरा करेंगे।