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बंबई उच्च न्यायालय का तलाक पर महत्वपूर्ण निर्णय: आत्महत्या की धमकी को माना क्रूरता

बंबई उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जीवनसाथी द्वारा बार-बार आत्महत्या की धमकी देना क्रूरता के समान है। इस मामले में, एक व्यक्ति ने पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी तलाक की अर्जी खारिज कर दी गई थी। अदालत ने कहा कि दंपती एक दशक से अधिक समय से अलग रह रहे हैं और उनके बीच कोई मेल-मिलाप संभव नहीं है। इस फैसले में, अदालत ने व्यक्ति को तलाक की अनुमति देते हुए उसे 25 लाख रुपये का भुगतान करने और दो फ्लैट महिला को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया।
 

बंबई उच्च न्यायालय का निर्णय

बंबई उच्च न्यायालय ने एक तलाक के मामले में निर्णय देते हुए कहा कि यदि जीवनसाथी बार-बार आत्महत्या की धमकी देता है, तो यह क्रूरता के समान है। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ ने अपने हालिया आदेश में स्पष्ट किया कि इस तरह के व्यवहार के चलते पति या पत्नी के लिए वैवाहिक संबंध बनाए रखना असंभव हो जाता है।


यह आदेश उस व्यक्ति की याचिका पर दिया गया था, जिसने पारिवारिक अदालत के 2019 के निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी तलाक की अर्जी खारिज कर दी गई थी।


याचिका में बताया गया है कि व्यक्ति की शादी 2006 में हुई थी, लेकिन वैवाहिक विवाद के कारण वह 2012 से अपनी पत्नी से अलग रह रहा था। उसने यह भी दावा किया कि अलगाव, संदेह और आत्महत्या की धमकियां हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के लिए उचित आधार हो सकते हैं।


पीठ ने अपने आदेश में कहा कि दंपती एक दशक से अधिक समय से अलग रह रहे हैं और उनके बीच कोई सौहार्द्रपूर्ण समझौता नहीं हो पाया है। अदालत ने यह भी कहा कि व्यक्ति ने क्रूरता के कई उदाहरण पेश किए, लेकिन पारिवारिक अदालत ने उन पर ध्यान नहीं दिया।


अदालत ने उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि आत्महत्या की धमकी देना क्रूरता है। उच्च न्यायालय ने कहा, 'जब इस तरह का व्यवहार बार-बार होता है, तो दंपती के लिए शांतिपूर्ण वातावरण में वैवाहिक संबंध बनाए रखना असंभव हो जाता है।'


अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी के द्वारा किए गए संदेह और आत्महत्या के प्रयास पति के प्रति उसके व्यवहार को दर्शाते हैं। पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि अब पति-पत्नी का एक साथ रहना संभव नहीं है, इसलिए तलाक का आदेश दिया जाना चाहिए।


अदालत ने तलाक की अनुमति देते हुए व्यक्ति को अंतिम निपटान के रूप में 25 लाख रुपये का भुगतान करने और दो फ्लैट महिला को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया।