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प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय सशस्त्र बलों की भूमिका की सराहना की

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोलकाता में आयोजित संयुक्त कमांडर सम्मेलन में भारतीय सशस्त्र बलों की सराहना की और 'भारतीय सशस्त्र बल विजन 2047' दस्तावेज का अनावरण किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत की सुरक्षा रणनीति को भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप तैयार करना है। मोदी ने बताया कि भारतीय सशस्त्र बल अब सीमित जवाबी कार्रवाई तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आतंकवाद के स्रोतों को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। सम्मेलन में तीनों सेनाओं के समन्वय और तकनीकी आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया। जानें इस सम्मेलन के प्रमुख बिंदु और भारत की रक्षा नीति में होने वाले बदलाव।
 

प्रधानमंत्री का संबोधन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सशस्त्र बलों की महत्वपूर्ण भूमिका की प्रशंसा की और उनके राष्ट्र निर्माण में योगदान को उजागर किया। कोलकाता में विजय दुर्ग, जो पूर्व में फोर्ट विलियम के नाम से जाना जाता था, में आयोजित तीन दिवसीय संयुक्त कमांडर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, मोदी ने 'भारतीय सशस्त्र बल विजन 2047' दस्तावेज भी जारी किया। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह दस्तावेज भविष्य के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की दिशा निर्धारित करता है। यह सम्मेलन केवल एक औपचारिक रक्षा आयोजन नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और भारत की दीर्घकालिक सामरिक रणनीति का संकेतक भी है।


ऑपरेशन सिंदूर का महत्व

हाल ही में संपन्न ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय सशस्त्र बल अब सीमित जवाबी कार्रवाई तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आतंकवाद के संरचनात्मक तंत्र को उसके स्रोत तक नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। नियंत्रण रेखा पार कर आतंकी ढांचे को ध्वस्त करना केवल सैन्य दक्षता नहीं, बल्कि राजनीतिक-सामरिक इच्छाशक्ति का भी प्रमाण है। इस प्रकार, सम्मेलन का आयोजन तीनों सेनाओं के सामूहिक आत्मविश्वास को और मजबूत करता है।


विजन 2047 की रणनीति

सम्मेलन के दौरान जारी दस्तावेज़ 'भारतीय सशस्त्र बल विजन 2047' स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष तक भारत को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करने की रणनीति है। यह दृष्टि पत्र पारंपरिक युद्ध से आगे बढ़कर साइबर, अंतरिक्ष और बहु-क्षेत्रीय युद्धक्षेत्र की तैयारी को रेखांकित करता है। इसका संदेश स्पष्ट है— भारत अपने सुरक्षा ढांचे को केवल वर्तमान नहीं, बल्कि आने वाले तीन दशकों तक प्रासंगिक बनाए रखने की दिशा में अग्रसर है।


संयुक्त कमांडर सम्मेलन का महत्व

संयुक्त कमांडर सम्मेलन का केंद्रीय विचार हमेशा ज्वॉइंटनेस और इंटीग्रेशन रहा है। आधुनिक युद्ध केवल थल, जल और वायु तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सूचना, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष क्षेत्रों में भी निर्णायक बन चुका है। इसलिए तीनों सेनाओं का समन्वय केवल विकल्प नहीं, आवश्यकता है। इस सम्मेलन में संस्थागत सुधारों और गहन एकीकरण पर जोर दिया गया है, जो भविष्य के थिएटर कमांड ढांचे की ओर एक ठोस कदम है।


सुरक्षा की समग्र अवधारणा

इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष और तीनों सेनाओं के प्रमुख एक साथ विचार-विमर्श करते हैं। यह केवल सैन्य नहीं, बल्कि समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को मूर्त रूप देता है। इस स्तर पर संवाद यह सुनिश्चित करता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सैन्य क्षमताओं के बीच सामंजस्य बना रहे।


सुधारों का वर्ष

इस साल के सम्मेलन का विषय है- 'सुधारों का वर्ष– भविष्य के लिए परिवर्तन'। यह विषय सेनाओं की संगठनात्मक संरचना में बदलाव, तकनीकी आधुनिकीकरण, संस्थागत जवाबदेही और पारदर्शिता में सुधार पर केंद्रित है। इससे यह संदेश जाता है कि भारतीय सशस्त्र बल स्थायी संस्थागत जड़ता में नहीं फंसना चाहते, बल्कि समयानुकूल बदलाव के लिए तैयार हैं।


कोलकाता का विजय दुर्ग

सम्मेलन का स्थल— कोलकाता का विजय दुर्ग, पूर्वी सीमाओं और हिंद-प्रशांत रणनीति की ओर भारत के बढ़ते ध्यान का प्रतीक है। यह इंगित करता है कि भारत केवल पश्चिमी सीमाओं की चुनौती तक सीमित नहीं, बल्कि पूर्व और समुद्री परिदृश्य को भी बराबर महत्व दे रहा है।


भविष्य की चुनौतियाँ

हाल के महीनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत जिन सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है, वह पारंपरिक से कहीं आगे निकल चुकी हैं। चीन का तीव्र सैन्य आधुनिकीकरण और सीमा पर उसकी आक्रामक रणनीति, साथ ही पाकिस्तान की ओर से जारी आतंकवाद समर्थित अस्थिरता, भारत की रक्षा नीति को केवल प्रतिक्रियात्मक बनाए रखने की अनुमति नहीं देते।


आत्मनिर्भरता की आवश्यकता

रक्षा नीति का दूसरा स्तंभ आत्मनिर्भरता होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति-श्रृंखलाओं पर निर्भर रहना एक बड़ा जोखिम है। सरकार पहले ही पॉजिटिव इंडिजिनाइजेशन लिस्ट जारी कर चुकी है, पर आने वाले दिनों में हथियार, ड्रोन, गोला-बारूद और संचार प्रणालियों में घरेलू उत्पादन को और तेजी से बढ़ाना होगा।


संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता

भारत की रक्षा नीति अब केवल पश्चिमी सीमा तक सीमित नहीं रह सकती। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी और समुद्री सुरक्षा पर उसकी निगाहें भारत से एक व्यापक दृष्टिकोण की मांग करती हैं।


संयुक्त कमांडर सम्मेलन का समापन

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में शामिल हुए। सम्मेलन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान, रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह और भारतीय सशस्त्र बलों के तीनों प्रमुखों ने भी भाग लिया। यह द्विवार्षिक सम्मेलन सशस्त्र बलों का शीर्ष विचार-मंथन मंच है, जो देश के शीर्ष नागरिक और सैन्य नेतृत्व को वैचारिक और रणनीतिक स्तर पर विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए एक साथ लाता है।