पुणे अदालत ने सावरकर के पौत्र की याचिका खारिज की
सावरकर के पौत्र की याचिका पर अदालत का निर्णय
पुणे की अदालत ने बृहस्पतिवार को विनायक दामोदर सावरकर के पौत्र द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में उन्होंने उस पुस्तक की जानकारी मांगी थी, जिसका उल्लेख कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने स्वतंत्रता सेनानी के बारे में कथित रूप से मानहानिकारक टिप्पणी करते हुए किया था.
विशेष अदालत के न्यायाधीश अमोल शिंदे ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस नेता को पुस्तक प्रस्तुत करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। शिकायतकर्ता सत्यकी सावरकर ने मई में आवेदन देकर कहा था कि गांधी द्वारा संदर्भित पुस्तक का अस्तित्व ही नहीं है, और यदि ऐसी कोई पुस्तक है, तो गांधी को उसे पेश करने के लिए कहा जाए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी को मुकदमा शुरू होने से पहले अपने बचाव से संबंधित साक्ष्यों को प्रस्तुत करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। आदेश में यह भी कहा गया है कि आरोपी अपने बचाव से जुड़े साक्ष्य पेश करते समय कोई भी प्रासंगिक दस्तावेज प्रस्तुत कर सकता है. यदि आरोपी को समय से पहले ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा.
न्यायाधीश ने कहा, अनुच्छेद 20(3) के अनुसार, किसी भी आरोपी को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसलिए, अदालत का मानना है कि आरोपी को उक्त दस्तावेज पेश करने का निर्देश देने वाला आदेश पारित नहीं किया जा सकता.
सत्यकी सावरकर ने मार्च 2023 में लंदन में दिए गए भाषण का हवाला देते हुए राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में कहा गया है कि कांग्रेस सांसद ने भाषण के दौरान यह दावा किया था कि वी डी सावरकर ने एक किताब में लिखा था कि उन्होंने और उनके कुछ दोस्तों ने एक मुस्लिम व्यक्ति की पिटाई की थी, और उन्हें इस पर खुशी हुई थी.
सत्यकी सावरकर ने मानहानि शिकायत में कहा है कि ऐसी कोई घटना कभी नहीं हुई और न ही सावरकर ने ऐसा कुछ लिखा है.