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पाकिस्तान में 27वें संविधान संशोधन से न्यायपालिका पर सेना का नियंत्रण बढ़ा

पाकिस्तान में हाल ही में पारित 27वें संविधान संशोधन ने न्यायपालिका में सेना के प्रभाव को बढ़ा दिया है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा हस्ताक्षरित इस विधेयक के तहत, आर्मी चीफ असीम मुनीर को नई शक्तियाँ मिली हैं, जिससे सुप्रीम कोर्ट की शक्तियाँ सीमित हो गई हैं। नए संघीय संवैधानिक कोर्ट (एफसीसी) का गठन किया गया है, जो संवैधानिक मामलों की सुनवाई करेगा। इस बदलाव के खिलाफ पूर्व न्यायाधीशों का विरोध भी शुरू हो गया है। जानें इस विधेयक के संभावित प्रभावों के बारे में।
 

पाकिस्तान के संविधान में नया संशोधन

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने 27वें संविधान संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, जिससे यह अब देश के संविधान का हिस्सा बन गया है। यह विधेयक फील्ड मार्शल असीम मुनीर की शक्तियों को काफी बढ़ाता है और सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों को सीमित करते हुए एक नया न्यायालय स्थापित करता है।


न्यायपालिका पर सेना का दबाव

आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने राष्ट्रपति से 27वें संविधान संशोधन को पास करवाकर संघीय संवैधानिक कोर्ट (एफसीसी) का गठन किया। विधेयक के पारित होने के 24 घंटे के भीतर, मुनीर ने अमीनुदुद्दीन खान को एफसीसी के चीफ जस्टिस के रूप में शपथ दिलाई। यह पहली बार है जब किसी आर्मी चीफ ने इस तरह के समारोह में भाग लिया।


विरोध और चिंताएं

पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों ने इस नए गठन का विरोध करना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि पाकिस्तान में न्यायपालिका को सेना के दबाव में लाया जा रहा है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।


एफसीसी के अधिकार और प्रभाव

नए संघीय संवैधानिक कोर्ट के पास सभी संवैधानिक मामलों की सुनवाई का अधिकार होगा, जिससे सुप्रीम कोर्ट की भूमिका सीमित हो जाएगी। अब सुप्रीम कोर्ट किसी भी मामले में स्वप्रेरणा से संज्ञान नहीं ले सकेगा। इसके अलावा, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान से जुड़े मामलों की सुनवाई भी एफसीसी में होगी, जिससे मुनीर को अपने विरोधियों पर प्रभाव डालने का अवसर मिलेगा।


नए न्यायालय की संरचना

संघीय संवैधानिक न्यायालय (FCC) का गठन किया जा रहा है, जिसमें अपने मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश होंगे, जिनकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाएगी। यह न्यायालय संविधान की व्याख्या और विभिन्न सरकारों के बीच विवादों की सुनवाई करेगा। अब सर्वोच्च न्यायालय केवल दीवानी और फौजदारी मामलों के लिए अंतिम अपील न्यायालय के रूप में कार्य करेगा।