पश्चिम बंगाल में हुमायूं कबीर की नई राजनीतिक पारी
पश्चिम बंगाल में हुमायूं कबीर की नई राजनीतिक पारी ने चुनावी माहौल को बदल दिया है। टीएमसी से निकाले गए कबीर ने अल्पसंख्यक वोटर्स को एकजुट करने का लक्ष्य रखा है। उनकी नई पार्टी की घोषणा और कांग्रेस में शामिल हुए पीरजादा खोबायेब अमीन की गतिविधियों से राज्य की राजनीति में हलचल मची है। क्या कबीर अपनी स्थिति मजबूत कर पाएंगे? जानें पूरी कहानी में।
Dec 22, 2025, 11:25 IST
बंगाल की राजनीति में नया मोड़
पश्चिम बंगाल में हुमायूं कबीर की एंट्री से कितनी बदलेगी राजनीति
बिहार में चुनाव के बाद अब पश्चिम बंगाल में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। यहां विधानसभा चुनाव कुछ महीनों में होने वाले हैं, जिससे सभी की नजरें राज्य की गतिविधियों पर हैं। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से निकाले गए हुमायूं कबीर अब सक्रिय हो गए हैं। पहले उन्होंने मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद बनाने का ऐलान किया था और अब वह एक नई पार्टी की घोषणा करने वाले हैं। उनके इस कदम से बंगाल की राजनीति में एक नई दिशा की संभावना बढ़ गई है।
हुमायूं कबीर, जो टीएमसी से निलंबित विधायक हैं, ने हाल ही में ‘तृणमूल कांग्रेस विरोधी’ और ‘भारतीय जनता पार्टी विरोधी’ ताकतों को एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की सरकार को हटाने के लिए गठबंधन बनाने का प्रस्ताव रखा। कबीर ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी सभी 294 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
कबीर का अल्पसंख्यक वोटर्स पर ध्यान
कबीर ने कहा कि उनका उद्देश्य अल्पसंख्यक वोटर्स को एकजुट करना है। उनका लक्ष्य है कि वे कम से कम 90 सीटों पर जीत हासिल करें ताकि चुनाव के बाद उनकी पार्टी नई सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। वरना, मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद बनाने का सपना अधूरा रह सकता है।
मुर्शिदाबाद जिले के भरतपुर क्षेत्र से विधायक हुमायूं कबीर मुस्लिम समाज के हितों की बात कर रहे हैं। बंगाल की राजनीति में पहले से ही दो पीरजादा सक्रिय हैं, एक कांग्रेस के साथ और दूसरा टीएमसी के साथ। ऐसे में कबीर के पास एक नया खेमा बनाने का विकल्प है, क्योंकि वह बीजेपी के साथ नहीं जा सकते।
कांग्रेस में शामिल हुए पीरजादा खोबायेब अमीन
इस साल मई में सामाजिक कार्यकर्ता पीरजादा खोबायेब अमीन कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्हें पार्टी महासचिव गुलाम अहमद मीर और मीडिया चेयरमैन पवन खेड़ा की उपस्थिति में पार्टी में शामिल कराया गया। अमीन का परिवार धर्म और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।
टीएमसी की रणनीति
टीएमसी ने पीरजादा अमीन के कांग्रेस में जाने के बाद फुरफुरा शरीफ के पीरजादा कासिम सिद्दीकी को पार्टी का महासचिव नियुक्त किया। यह कदम मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए उठाया गया है।
कासिम सिद्दीकी को बड़ी जिम्मेदारी दी गई है, क्योंकि पिछले चुनाव में ISF ने अच्छा प्रदर्शन किया था। ममता बनर्जी ने कासिम को पार्टी में शामिल किए बिना ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है ताकि मुस्लिम वोट को दूसरी ओर जाने से रोका जा सके।
राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिशें
बंगाल में विधानसभा चुनाव में अभी समय है, लेकिन सभी राजनीतिक दलों ने ध्रुवीकरण की कोशिशें तेज कर दी हैं। बीजेपी बांग्लादेश में हिंसा और मुर्शिदाबाद में सांप्रदायिक हिंसा के मामलों के जरिए माहौल बनाने में जुटी है।
हुमायूं कबीर के राजनीतिक समर में कूदने से चुनावी माहौल में बदलाव आ रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कबीर अपनी स्थिति कैसे मजबूत करते हैं और कांग्रेस तथा टीएमसी के बीच अपनी नई पारी को कैसे आगे बढ़ाते हैं।