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पश्चिम बंगाल में बीजेपी की चुनाव आयोग से अपील: 24 जून के बाद के दस्तावेज न हों मान्य

पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने चुनाव आयोग से अपील की है कि 24 जून के बाद जारी दस्तावेजों को मान्यता न दी जाए। पार्टी का आरोप है कि ममता बनर्जी की सरकार द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों में अनियमितताएं हैं। बीजेपी ने एसआईआर प्रक्रिया के दौरान दस्तावेजों की जांच को सख्त करने की मांग की है। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और बीजेपी के तर्क।
 

पश्चिम बंगाल में एसआईआर पर विवाद

पश्चिम बंगाल में एसआईआर को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।

आज (04 नवंबर 2025) से देश के 12 राज्यों में एसआईआर लागू किया जा रहा है, जिसके खिलाफ कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस प्रक्रिया का खुलकर विरोध किया है। दूसरी ओर, बीजेपी ने चुनाव आयोग से सुरक्षा उपायों को सख्त करने की मांग की है। पार्टी ने ममता सरकार द्वारा जारी दस्तावेजों पर सवाल उठाते हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया में आपत्ति जताई है।

बीजेपी का आरोप है कि नागरिकता और निवास स्थापित करने के लिए बड़े पैमाने पर “पिछली तारीख के और जाली दस्तावेज़” का इस्तेमाल किया जा रहा है। पार्टी ने चुनाव आयोग से अपील की है कि 24 जून के बाद जारी जन्म प्रमाण पत्रों को मान्यता न दी जाए और अन्य दस्तावेजों की गहन जांच की जाए।

चुनाव आयोग से बीजेपी प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात

पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य, सांसद बिप्लब देब और बीजेपी आईटी विभाग के प्रभारी अमित मालवीय सहित एक प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को चुनाव आयोग से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा जारी किए गए महत्वपूर्ण दस्तावेजों को चुनौती दी और चुनाव आयोग से एसआईआर के दौरान दस्तावेजों की जांच में उचित ध्यान देने का आग्रह किया।

जून में बिहार में एसआईआर लागू किया गया था, जिसमें मतदाताओं को अपनी पात्रता साबित करने के लिए कई दस्तावेज पेश करने की आवश्यकता थी, जैसे जन्म, जाति, वन अधिकार प्रमाण पत्र और पासपोर्ट।

बीजेपी की मांगें

बीजेपी प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग को सौंपे ज्ञापन में तृणमूल कांग्रेस सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया मतदाता सूचियों की पवित्रता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, वर्तमान में मतदाता पंजीकरण के लिए उपयोग किए जा रहे दस्तावेजों में गंभीर अनियमितताएं देखी जा रही हैं।

प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर जाली दस्तावेज जारी किए गए हैं, जिससे घुसपैठियों को मदद मिली है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 2020 से जारी किए गए प्रमाणपत्रों की संख्या में तेजी आई है, जिनका उपयोग नागरिकता और निवास का झूठा सबूत बनाने के लिए किया जा रहा है।

बूथ स्तर पर सत्यापन की आवश्यकता

बीजेपी ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि 24 जून के बाद जारी जन्म प्रमाण पत्रों को मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। यदि आवश्यक हो, तो बूथ-स्तरीय अधिकारियों द्वारा मामले-दर-मामला आधार पर उनका सत्यापन किया जाना चाहिए।

ज्ञापन में कहा गया है कि केवल ग्रुप-ए अधिकारियों द्वारा जारी और हस्ताक्षरित स्थायी निवास प्रमाण पत्र ही मान्य होने चाहिए। वन अधिकार प्रमाण पत्रों के मामले में, केवल वे प्रमाण पत्र स्वीकार किए जाने चाहिए जो 2 अप्रैल से पहले जारी किए गए हों।

प्रमाण पत्रों की बड़ी संख्या

बीजेपी ने आरोप लगाया है कि दुआरे सरकार की शिविरों के माध्यम से बिना जांच के जाति प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं, जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हैं। इनमें से कई पर अवैध घुसपैठियों का आरोप है। हाईकोर्ट ने पहले ही ओबीसी-ए श्रेणी को अवैध घोषित कर दिया है, और मामला अभी भी कोर्ट में विचाराधीन है।