पंडित छन्नूलाल मिश्रा: संगीत की दुनिया में संघर्ष और सफलता की कहानी
पंडित छन्नूलाल मिश्रा का परिचय
पंडित छन्नूलाल मिश्र
लगभग तीन दशक पहले, प्रयागराज में प्रयाग संगीत समिति में एक संगीत कार्यक्रम चल रहा था। सर्दियों के दिन थे और पंडित छन्नूलाल मिश्र ने अपनी गायकी से सबका ध्यान खींचा। रात के करीब दस बजे, एक व्यक्ति अपनी कुर्सी से उठकर हॉल से बाहर जाने लगे, तभी पंडित जी ने उन्हें रोकते हुए एक शेर पेश किया:
उधर तुम हो कि जाने को खड़े हो,
इधर दिल है कि बैठा जा रहा है
वो सज्जन झेंपकर वापस बैठ गए और गायन खत्म होने तक वहीं रहे। पंडित जी का यह अंदाज दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता था। वे गाते हुए बातें करते थे और श्रोताओं को संगीत की बारीकियों से अवगत कराते थे।
पंडित छन्नूलाल मिश्र का असली नाम और प्रारंभिक जीवन
पंडित छन्नूलाल मिश्र का असली नाम मोहन लाल मिश्रा था। बनारस में एक बार उन्होंने अपने नाम के पीछे की कहानी साझा की। उस समय बच्चों के नाम इस तरह रखे जाते थे ताकि वे बुरी नजर से बच सकें। उनका नाम छन्नू का अर्थ था, जो शरीर में छह प्रकार के विकारों से मुक्त हो। उनका जन्म 1936 में आजमगढ़ के हरिहरपुर गांव में हुआ। उनके पिता, बद्री प्रसाद मिश्रा, खुद एक तबला वादक थे और उन्होंने पंडित जी को संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी।
संघर्ष और संगीत की ओर यात्रा
पंडित जी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनके पिता की कमाई से ही घर चलता था। पंडित जी ने बताया कि बचपन में वे मोटे अनाज का सेवन करते थे। उनके पिता हमेशा उन्हें प्रोत्साहित करते थे कि वे बड़े होकर परिवार का नाम रोशन करें। एक बार तालाब में कूदने पर उनके पिता ने उन्हें डांटा, जिससे उन्हें समझ आया कि उनके पिता की चिंता उनके भविष्य के लिए थी।
गुरु की खोज
जब पंडित जी की उम्र लगभग 8-9 साल थी, उनके पिता ने उन्हें मुजफ्फरपुर में किराना घराने के कलाकार अब्दुल गनी खान के पास भेजा। वहां पंडित जी को संगीत की विधिवत शिक्षा लेने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। उस्ताद जी ने उनकी लगन को परखने के लिए उन्हें कई बार कठिनाइयों का सामना कराया। अंततः, उन्होंने उस्ताद जी से संगीत की शिक्षा प्राप्त की।
संगीत में सफलता
पंडित छन्नूलाल मिश्र की मेहनत ने उन्हें भारत के प्रमुख कलाकारों में शामिल कर दिया। उनके कार्यक्रमों में लोग उपशास्त्रीय गायन का आनंद लेने आते थे। उन्होंने कई प्रसिद्ध गाने गाए, जिनमें से 'सांस अलबेली' भी शामिल है। भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया।