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नैना देवी मंदिर में नवदुर्गा के अवसर पर नए नियम

नैना देवी मंदिर में शारदीय नवरात्रि के अवसर पर कुछ नए नियम लागू किए गए हैं। श्रद्धालुओं के लिए नारियल चढ़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है, जो सुरक्षा कारणों से किया गया है। मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया है। इस लेख में नैना देवी मंदिर की विशेषताओं और नए नियमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
 

नैना देवी के दर्शन के लिए नए नियम


नैना देवी मंदिर में नवदुर्गा के अवसर पर नए नियम: शारदीय नवरात्रि का पर्व चल रहा है, और हर जगह माता की जयकारें गूंज रही हैं। श्रद्धालु सुबह से ही मंदिरों और शक्तिपीठों में जाकर माता के आशीर्वाद की प्राप्ति कर रहे हैं। यदि आप हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री नैना देवी जी मंदिर में नवरात्रि के दौरान जा रहे हैं, तो यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण है। मंदिर में कुछ नियमों में बदलाव किए गए हैं। माता के दर्शन से पहले इन नियमों के बारे में जानना आवश्यक है।



नारियल चढ़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध
नैना देवी मंदिर एक प्राचीन और प्रमुख शक्तिपीठ है। यह बिलासपुर जिले में त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है और इसे त्रिकुटा धाम भी कहा जाता है। इस वर्ष नवरात्रि के दौरान, प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर परिसर में नारियल चढ़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है, जिसका कारण सुरक्षा चिंताएं बताई गई हैं। भारी भीड़ और सुरक्षा जोखिमों के कारण यह कदम उठाया गया है। श्रद्धालुओं को जो नारियल लेकर आते हैं, उन्हें मुख्य प्रवेश द्वार पर रोका जाता है, और उनके नारियल ले लिए जाते हैं, जिन्हें बाहर निकलते समय वापस किया जाता है।


सुविधा और सुरक्षा का ध्यान रखा गया है
मंदिर के पुजारी मनीष शर्मा ने बताया कि श्रद्धालुओं से नारियल मुख्य प्रवेश द्वार पर लिए जाते हैं और बाहर निकलने पर प्रसाद के रूप में लौटाए जाते हैं। यह व्यवस्था श्रद्धालुओं और मंदिर परिसर की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि नवरात्रि मेले के दौरान श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या के कारण सुरक्षा उपायों को सख्त करना आवश्यक हो गया है। यह नियम श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया है।


नैना देवी के साथ काली माता की मूर्ति भी स्थापित की गई है
शक्ति परंपरा के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के शव को ले जा रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का उपयोग करके उनके वजन को कम किया। माता सती की आंखें (नयन) इसी स्थान पर गिरीं, इसलिए इसे नैना देवी कहा जाता है। इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में देवी की दो आंखों के साथ महाकाली और काली की मूर्तियाँ भी हैं। देवी को शक्ति के रूप में विराजमान माना जाता है, जिनके बाईं ओर भगवान गणेश और दाईं ओर भगवान कालभैरव हैं।



यह शक्ति का जागृत पीठ माना जाता है
कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने मुगलों के साथ युद्ध से पहले यहाँ देवी का आशीर्वाद लिया था। यह स्थान हिमाचल का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और इसे शक्ति का जागृत पीठ माना जाता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ और रोपवे उपलब्ध हैं। मंदिर प्रशासन ने बताया कि हर साल नवरात्रि मेले के दौरान ऐसी व्यवस्थाएँ की जाती हैं ताकि श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या के बावजूद कोई अप्रिय घटना न हो। सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ श्रद्धालुओं के धार्मिक अधिकारों का भी सम्मान किया जाता है।


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