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नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल: भारत की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ीं

नेपाल इस समय गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट का सामना कर रहा है, जो भारत की सुरक्षा और रणनीतिक हितों से जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने हालात पर त्वरित प्रतिक्रिया दी है, जबकि भारत सरकार ने संयमित दृष्टिकोण अपनाया है। नेपाल में संकट का असर भारत-नेपाल सीमा पर भी स्पष्ट है, जिससे सुरक्षा चौकसी बढ़ाई गई है। जानें इस संकट का भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है और कैसे दोनों देशों के बीच संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
 

नेपाल की राजनीतिक स्थिति

नेपाल वर्तमान में गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट का सामना कर रहा है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के बाद शुरू हुआ जनाक्रोश अब हिंसक प्रदर्शनों में बदल चुका है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद, नेपाल की राजनीति एक अस्थिर दौर में प्रवेश कर चुकी है। यह स्थिति भारत के लिए केवल एक पड़ोसी देश की समस्या नहीं है, बल्कि यह उसकी सुरक्षा और रणनीतिक हितों से भी जुड़ी हुई है। इस कारण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालात पर ध्यान देते हुए कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक बुलाई। उन्होंने कहा कि नेपाल में हो रही हिंसा और युवाओं की मौतें अत्यंत दुखद हैं। मोदी ने शांति और स्थिरता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि नेपाल की शांति और समृद्धि भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.


भारत सरकार की प्रतिक्रिया

भारत सरकार ने नेपाल के हालात पर संयमित प्रतिक्रिया दी है। सरकार ने न केवल स्थिति पर नजर रखने की बात कही, बल्कि नेपाल में रहने वाले भारतीय नागरिकों को घरों में रहने और यात्रा स्थगित करने की सलाह दी। यह सावधानीपूर्ण दृष्टिकोण इस उद्देश्य से अपनाया गया कि भारत को पड़ोसी की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेपकारी नहीं माना जाए, जबकि अपनी सुरक्षा और नागरिकों की रक्षा को भी सुनिश्चित किया जाए.


सीमा पर तनाव

नेपाल में संकट का प्रभाव भारत-नेपाल सीमा पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। सिलिगुड़ी, रक्सौल और पिथौरागढ़ जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव बढ़ गया है। सैकड़ों मालवाहक ट्रक रुके हुए हैं, व्यापार ठप है, और नेपाल के नागरिक खाद्य सामग्री के लिए भारत की ओर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सात जिलों—पिलीभीत, लखीमपुर खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और महाराजगंज में सुरक्षा चौकसी बढ़ा दी गई है। 73 से अधिक चेकपोस्ट्स पर सघन तलाशी और चौकसी की जा रही है। भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि नेपाल की अस्थिरता का फायदा उठाकर असामाजिक या आतंकवादी तत्व सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय न हो जाएँ.


भारत की रणनीति

भारत को यह भलीभाँति ज्ञात है कि नेपाल की अगली सरकार किस दिशा में जाएगी, यह उसके दीर्घकालिक हितों के लिए महत्वपूर्ण होगा। यदि नई सरकार भारत समर्थक होती है, तो सीमा सुरक्षा, जल संसाधन, ऊर्जा और व्यापार में स्थिर सहयोग संभव होगा। लेकिन यदि चीन-झुकाव वाली ताकतें हावी होती हैं, तो यह भारत-नेपाल संबंधों के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है. इसलिए भारत के लिए आवश्यक है कि नेपाल का राजनीतिक संतुलन ऐसे हाथों में जाए जो दोनों देशों की पारंपरिक मित्रता को आगे बढ़ा सकें.


प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तत्परता और संवेदनशीलता के साथ हालात पर प्रतिक्रिया दी, उससे यह स्पष्ट होता है कि भारत नेपाल के संकट को गंभीरता से ले रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीमावर्ती जिलों में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया है ताकि नेपाल की अस्थिरता का असर उत्तर प्रदेश की जनता पर न पड़े. चौबीसों घंटे गश्त, कड़े प्रवेश बिंदु जांच और प्रशासनिक सतर्कता इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं.


भारत के लिए चुनौती

नेपाल का संकट भारत के लिए केवल एक कूटनीतिक चुनौती नहीं है, बल्कि यह सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय स्थिरता से भी जुड़ा हुआ है। भारत का मानना है कि नेपाल की शांति और स्थिरता उसकी अपनी सुरक्षा और विकास के लिए आवश्यक है। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संतुलित नेतृत्व यह सुनिश्चित कर रहा है कि नेपाल के संकट का असर भारत की सीमा के भीतर न फैले. भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि वह नेपाल में लोकतांत्रिक और भारत समर्थक सरकार के गठन के पक्ष में सकारात्मक प्रभाव बनाए रखे.